मुक्तक (36 )

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(106 )
मीत  होकर भी नहीं स्वीकार करते हो

क्यों हमारे प्यार का  व्यापार करते हो

हम समझ पाये नहीं ये आज तक साथी

क्यों भुलाने को हमें लाचार करते हो

(107 )
रूप कैसे है दिखाती ज़िन्दगी भी

खिलखिलाती तो रुलाती ज़िन्दगी भी

साथिया जी लो मिलेगी कब दुबारा

पाठ हरदम ये सिखाती ज़िन्दगी भी

(108 )

आप हो जीवन हमारे

चाँद सूरज और तारे

जिन्दगी कट जाएगी अब

एक दूजे के सहारे

डॉ अर्चना गुप्ता

मुक्तक (35 )

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(१०३)

आपके बन कर रहेंगे देख लेना

आपके मन की कहेंगे देख लेना

प्यार इतना आपसे हमने किया है

दर्द भी हंसकर सहेंगे देख लेना

(104 )
चाँद ये जब चाँदनी को प्यार करता है

पूर्णमासी को मिलन सिंगार करता है

देखकर पावन मुहब्बत झूमते तारे

रूप इनका प्रेम को साकार करता है

 

(105 )

वक़्त ने जब कभी सताया है

हौसला हर कदम बढ़ाया है

लाख दुश्मन बना जमाना ये

साथ बस आपने निभाया है

डॉ अर्चना गुप्ता

मुक्तक (34 )

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(100)

सुनो दर्द में मुस्कुराने लगे हम

गजल तो कभी -गीत गाने लगे हम

नया साल आया लिये आज खुशियाँ

तुम्हें पा प्रिये खिलखिलाने लगे हम

(101)

नया साल आया चमन को सजालो

जो रूठे हुये हैं उन्हें तुम मनालो

गया वक्त वापस नहीं आएगा फिर

यहाँ हर ख़ुशी को गले से लगालो

(102)
नैनों में आसूँ भर आये

साथ पुराना छूटा जाये

यादों में तुम सदा रहोगे

विदा तुम्हारी हमें रुलाये

डॉ अर्चना गुप्ता

 

कुण्डलिनी छंद (3 )

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(7)

जल में जब नौका रहे, सँभल सके  हर कोय

जल यदि नौका में रहे , बचना मुश्किल होय

बचना मुश्किल होय ,यही संतों की बाणी

कभी न खोना होश ,काम की बड़े जवानी

(8)

त्रेता में सब राम थे   रावन  हुआ न हो

जब  इक रावन हो गया  बचा सका कब कोय

बचा सका कब कोय  बनायें ऐसा शासन

आओ मिलकर आज जला डालें सब रावन

(9)

किस्मत में है जो लिखा ,टाल सका कब कोय

तू पाने की चाह में ,चैन भला क्यों खोय

चैन भला क्यों खोय ,कर्म कुछ अच्छे कर ले

लेकर जन -आशीष ,झोलियाँ अपनी भर ले

डॉ अर्चना गुप्ता*******

 

 

मुक्तक (33 )

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(97 )

दर्द में हम मुस्कुराना जानते हैं

बन शमा खुद को जलाना जानते हैं

लाख दुश्मन हो भले सारा ज़माना

प्यार पर हम जां लुटाना जानते है

(98 )

तुम्हे पलकों पर मैं बिठाऊँगा

हथेली पर सरसों उगाऊँगा

मिलो मुझ को इक बार तो देखो

मुहब्बत के मोती लुटाऊँगा
(99)

वक्त पीछे गया रीत बाकी रही

हार की टीस में जीत बाकी रही

मुस्कुरा -मुस्कुरा कर चले वो गये

टूट नाता गया प्रीत बाकी रही

डॉ अर्चना गुप्ता

 

 

मुक्तक (32 )

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(94 )

कुटिल इन्सान कब होता कुटिल तो चाल होती है

बुराई देखकर इंसानियत बे हाल होती है

करो तुम नेह की बर्षा पिघल जाये कुटिल मन भी

भरा हो नेह दिल में तो मनुजता ढाल होती है

(95 )
वार हथोड़े के जब जब पड़ते है

हम सुन्दर मूरत को ही गढ़ते हैं

मत मारो हमको यूँ ठोकर प्यारे

पत्थर के देवों पर जल चढ़ते हैं

(96 )

सुहाने नज़ारे सुहाना सफ़र है

सजेंगे सितारे सभी को खबर है

ख़ुशी का खजाना लिये सन्त आया

सभो की टिकी आज उस पर नज़र है

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (30 )

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(88 )

अपनों से कब अधिकार मिला

दिल दर्द मिला कब प्यार मिला

सोने चाँदी की दुनियाँ में

बस जख्मों का उपहार मिला

(89)
वक्त की मार को कौन सह पाया है

दर्द अपने यहाँ कौन कह पाया है

तुम समझ लो मिली साँस गिनती की हैं

यूँ हमेशा यहाँ कौन रह पाया है

(90)
मौसम ने ऐसा वार किया

सर्दी में अत्याचार किया

रिमझिम रिमझिम मेघा बरसे

ठिठुरन से यूँ बेज़ार किया

 

डॉ अर्चना गुप्ता

 

 

 

मुक्तक (28)

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(82)

मन की  ख़ुशी कैसे मन  में समाये े

मोती ख़ुशी के नयन ने लुटाये

अभिमान मेरा तुम्ही तो हो  बच्चो       ै

तुमको नजर से  ये ईश्वर बचाये

(83)
कभी वो नाम देता है

कभी इल्ज़ाम देता है

अजब मेरा मसीहा है

कभी ईनाम देता है

(84)

धरा जल चाँद सूरज नभ हवा देता है

अगर हम हों गलत तब वो सजा देता है

निराले हैं बड़े अंदाज उस ईश्वर के

हमें यदि दर्द होता वो दवा देता है

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (29)

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(85 )

दोस्त जब बादलों को बनाया हमने

जो कलम ने लिखा वो सुनाया हमने

एक सैलाब सा आ गया धरती पर

‘अर्चना’ हाल जब भी बताया हमने

86 )

तन्हा हमारा दिल बिचारा हो गया

तुम से बिछुड़ना फिर गँवारा हो गया

परछाइया भी अब डराती हैं हमें

इन आँसुओं का ही सहारा हो गया

(87 )

लोग कहते चाँद में ये दाग है

चाँद ही दिल में लगाये आग है

चाँद सा मुखड़ा कहा , फिर दोष भी

इस जहाँ का भी अजब ये राग है
डॉ अर्चना गुप्ता

मुक्तक (27 )

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(79 )

जी रहे स्वप्न के गाँव में

आपके प्यार की छाँव में

जब मिले आपसे हम सजन

बज  उठी झांझरी पाँव में

(80 )
हंस की रात रानी सुनो

दो दिलों की कहानी सुनो

चाँद भी आज शरमा गया

हो गईं तुम दिवानी सुनो

(81 )

आसमां भी मुग्ध होकर इस धरा पर छा गया है

खूबसूरत सा समां ये आज दिल को भा गया है

झूमते से ये नज़ारे प्रेम दीवाने लगें अब

गीत गाने प्यार के जैसे समय खुद आ गया है

डॉ अर्चना गुप्ता