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(175 )

मैं पत्थर हूँ तुम पारस हो

मेरे उर का तुम साहस हो

तुम जीवन का वो उजियारा

जो दीप बने जब मावस हो

(176 )

पटक कर पत्थरों से सर वहीं से लौट आती है

लहर मायूस होकर फिर उसी में तो समाती है

दिखाता जख्म अपने कब समुन्दर प्यार में देखो

बहा आंसूं बने खारा ,मगर वो खिलखिलाती है

(177 )

तरन्नुम को मिले जब साज़ तो कुछ खास होता है

मचलते हैं बड़े जज्बात जब तू पास होता है

बिताये पल की वो यादें समेटी हैं कहीं दिल में

लगे है प्यार का शायद यही इतिहास होता है

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (58 )

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(172 )

प्यार भरी दुनियाँ को अब वो छोड़ आया है

मुँह अपनों से ही देखो वो मोड़ आया है

ये उसकी बदनसीबी नहीं और तो क्या है

अपने हाथों ही अपना घर तोड़ आया है

(173

संस्कारों को’ वो सब भुलाये हुए

सभ्यता हाथ अपने मिटाये हुए

देख जो कर रहे नाश इस देश का

आज परचम वही हैं उठाये हुए

(174 )

वो तो डूबा था फिर किनारे पर

उसके भोले से इक इशारे पर

उठती लहरों ने बस कहा इतना

जुल्म न ढाओ अब इस बिचारे पर

 

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (57 )

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(169 )

चाँद तुझको मान तेरी चाँदनी में झूम लूँ

या तुझे सूरज समझ कर धूप बनकर घूम लूँ

मिट गया तम ज़िन्दगी का फूल खुशिओं के खिले

मन करे भर कर हथेली में तुझे मैं चूम लूँ

 (170 )

बिटिया से साँझ सवेरा है

बिटिया खुशियों का डेरा है

दुनिया ये ख़त्म शुरू उस पर

क्यों गम ने उसको घेरा है

 (171 )

माँ भवानी का सजा दरबार देखो

माथ टीका औ गले का हार देखो

बज रहे घड़ियाल घंटे मंदिरों में

हो रही हर ओर जय -जयकार देखो

डॉ अर्चना गुप्ता

मुक्तक (56 )

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(166 )

नफरतों को छोड़कर बस प्यार करना चाहिए

यदि मिले कोई दुखी संताप हरना चाहिए

ज़िन्दगी है चार दिन की ध्यान ये रखना सदा

सिर्फ अपने फर्ज पर हर वक्त मरना चाहिए

(167 )

ओट में खुद को छिपाया चाँद ने फिर आज देखो

रात का घूँघट उठाया चाँद ने फिर आज देखो

खो गयी थी चाँदनी उसकी अमावस में कहीं

ढ़ूँढ कर सीने लगाया चाँद ने फिर आज देखो

(168 )

जुल्म कितना कर गये

नैन आसूँ भर गये

हम बिछड़कर आपसे

जीते’जी ही मर गये

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (55 )

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(163 )

प्रिय  प्यार की अब खो रही पहचान है
बस ढूढ़ता मानव नफा नुकसान है
चाहे कमा लो धन यहाँ भरपूर तुम
लाती लबों पर प्रीत ही मुस्कान है
(164 )

जब रूठ गए आप मनाया न गया बस
जब छोड़ गए साथ बुलाया न गया बस
हम राह चले आज अकेले जो सफर में
तो बीत गया वक़्त भुलाया न गया बस

(165 )

वर्ल्ड कप पर आज सबकी ही नज़र है
कौन जीता कौन हारा ये खबर है
जोश में देखो हमारे सब खिलाड़ी
खेल पर भी दिख रहा उसका असर है

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (54 )

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(160 )

यही तो मान है मेरा

यही सम्मान है मेरा

मुझे है गर्व भारत पर

यही अभिमान है मेरा

(161 )

कभी पलकें बिछाती है

कभी ये गुल खिलाती है

बड़ी ही है अजब दुनियाँ

ये’काँटे भी चुभाती है

(162 )

हर घड़ी में मुस्कुराना चाहिए

वक़्त जैसा हो निभाना चाहिए

जिन्दगी में पर किसी का भी नही

भूल से ये दिल दुखाना चाहिए

डॉ अर्चना गुप्ता

 

खूबसूरत ज़िन्दगी की खुशनुमा सुबह

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ज़िंदगी एक ऐसा सफर है जहां तरह तरह के अनुभव रोज ही होते रहते है। कभी ज़िंदगी बहुत खुशनुमा लगती है तो कभी ग़मों से बोझिल सी लगती है। अक्सर यही होता है कि हम दुःख के समय में नकारात्मकता से भर जाते है।  हर चीज़ हमें ख़राब ही लगती है।  ऐसे में बहुत सी घटनाएँ ऐसी दिख जाती है जो हमारे अंदर उत्साह भर देती हैं।

मेरा एक शौक बहुत पुराना  है कि  मै रोज सबह की सैर का आनंद लेती हूँ। आसमान  से ,पेड पौधों से ,चिड़ियों से बातें करना मुझे बहुत अच्छा लगता है। सैर करते हुए कुछ दृश्य मै रोज देखती हु जिन्हे देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता है और मुझे अपूर्व शान्ति मिलती है।

एक जोड़ा जो करीबन ७५  साल के आसपास का होगा रोज टहलने के लिए आता है। ये बुजुर्ग दम्पति धीरे धीरे डग भरते हुए चलते है। शायद आंटी के पैरों में दर्द रहता है।  अंकल उनका हाथ पकड़कर उनके साथ ही चलते हैं।  बीच बीच में डिवाइडर पर दोनों बैठ जाते हैं।  अंकल हाथ में ली बोतल से उन्हें पानी पिलाते हैं और फिर दोनों चल पड़ते हैं।

मै भी उनसे आगे बढ  जाती हूँ।  और जब लौटती हहूँ तो उन्हें एक मंदिर के आगे आपस में बातें करता हुआ  पाती हूँ। मै भी मंदिर में हाथ जोड़ती हूँ तो देखती हूँ अंकल बड़े प्यार से आंटी को उठा रहे है हैं और फिर दोनों चल पड़ते हैं साथ साथ। सच में बहुत अच्छा लगता है इतनी उम्र में भी उनका इतना प्यार देखकर। ये सब देखकर मुझमे एक नयी ऊर्जा और सकारात्मकता भर जाती  है कि सालों  बाद भी प्यार रहता है। घटता नही बल्कि बहुत ज्यादा बढ़ जाता है।

ऐसे ही रास्ते में एक पार्क पड़ता है जिसमे १०-१५ लोग जो शायद रिटायर हो चुके है, बैठे मिलते हैं। वो लोग मिलकर योग करते है तालियां बजाते है और जोर जोर से ठहाके लगाकर हास्य आसान करते हैं। परिचर्चा भी करते है नए नए विषयों पर। राजनीती पर बहस भी करते है। एक दिन तो मेने उन लोगो को कविता पाठ करते हुए देखा।  सब बड़े ही मनोयोग से सुन रहे थे।

मुझे बड़ा अच्छा लगा ये सब देखकर।  प्रेरणा भी मिली कि इंसान को कभी भी ये सोचकर नही बैठ जाना चाहिए की अब की क्या रखा है ज़िंदगी में। अब तो सारे काम ख़त्म हो गए बस राम नाम जपो। बल्कि अपनी  इच्छा और शौक पुरे करने चाहिए।  अपने ही हमउम्र लोगों के साथ बैठकर अपना मनोरंजन करना चाहिए।  ज़िंदगी के हर पल को ख़ुशी से बिताना चाहिए।

इस तरह से रोज मेरी सैर में शारीरिक स्वास्थ्य के साथ साथ मानसिक स्वास्थ्य भी अच्छा बना रहता है और मुझे सकारात्मक ऊर्जा भी मिल जाती है और  मुझे अभूतपूर्व शांति का अनुभव होता है। ये रोज़ का ही घटनाक्रम है।

डॉ अर्चना गुप्ता

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दोस्तों के साथ कुछ अनमोल पल

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जो क्षण हम जी रहे होते हैं वो उस समय हमारे लिए अत्यंत साधारण होते हैं पर वही क्षण विगत होते ही हमारे लिए असाधारण बन जाते हैं। और यही प्रक्रिया सतत चलती रहती है। इसी तरह जीवन भी व्यतीत होता चला जाता है। जो खुद बच्चे होते हैं वो वक़्त के साथ साथ खुद माता पिता बन जाते हैं और और अपने बच्चों के बचपन में अपना बचपन जी लेते हैं।

पर बचपन के सभी साथी मित्र स्कूल जीवन पर्यन्त याद रहते हैं चाहे वो हमसे कोसों दूर हो। जब कभी वक़्त मिलता है या तन्हाई होती है यादों के मेले सज ज़ाते हैं। और हम उस मेले में कहीं खो से जाते हैं।

ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ। जीवन की जिम्मेदारिया संभालते सँभालते उन पलों को भी जेहन में समेटते समेटते वक़्त अपनी तेजी से बढ़ रहा था । और जब इन सबसे निवृत हुई तो अपने जीवन के ४० बसंत पार कर चुकी थी। खाली वक़्त काटने की ग़रज़ से नेट की दुनिया से दोस्ती करली।

ये नेट मेरा पहला एक ऐसा दोस्त मिला जिसके पास मुझे देने के लिए बहुत कुछ था। ज्ञान के साथ साथ मनोरंजन भी। एक सच्चा साथी। जिसने मेरे खालीपन को काफी हद तक भर दिया। परन्तु ये तो मेरा इतना अच्छा दोस्त साबित हुआ की इसने मुझे बचपन के बिछड़े साथियों से भी मिला दिया। इस तरह मुझे बचपन का अनमोल खज़ाना मिल गया।

अपने पुराने दोस्तों सहेलियों से मिलकर तो खुशियों की कोई थाह ही नही थी। लग रहा था जैसे हम सभी उम्र के सोलहवें पड़ाव में पहुँच गए हो। खूब बातें करना हंसना एक दूसरे के बारे में जानने की उत्सुकता बस ख़ुशी ही ख़ुशी। पर मन आकाश तो अनंत है।ये कब पूरा होता है। अब मिलने की इच्छा जोर मारने लगी। अंत में नॉएडा सेंटर प्लेस होने के कारण वहां GIP मॉल में मिलने का एक कार्यक्रम तय किया गया।

बहुत उत्साहित थे हम सभी। बस आँखों में एक कल्पना की कैसा लगेगा जब इतने सालों के बाद मिलेंगे। पर जब मिले तो ऐसा लगा ही नही की २५ साल के लम्बे अंतराल के बाद मिल रहे हैं। वही शरारतें वही चपलता वही ठहाके। मन इतना हल्का की खुद के अंदर ढूंढने से भी नही महसूस हो रहा था। लग रहा था पता नही कितनी ऊर्जा अपने अंदर भर गयी है। उम्र तो डरकर भागकर एक ओर जाकर खड़ी हो गयी थी। वो ४-५ घंटे का समय हम सभी के लिए अविस्मरणीय समय था।
इस मुलाकात ने कितना सकारात्मक प्रभाव मझपर डाला था ये मेरे लिए शब्दों में बताना नामुमकिन है। फिर हम एक दूसरे से विदा हुए फिर मिलने का वादा लेकर। पर ये साथ ये मिलन हमारे लिए खुशियों का अथाह सागर लेकर आया था।

डॉ अर्चना गुप्ता

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और उड़ने को आसमान मिल गया

 

Image Source Flickr here: https://www.flickr.com/photos/stuant63/3443129398/
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सुना था ज़िंदगी कभी खत्म नही होती। हमेशा अवसर देती रहती है।  पर तब मुझे ये सब बातें खोखली सी लगती थी जब मैं अपनी जिम्मेदारियों से निवृत हो खाली खड़ी थी। उम्र मेरे हाथ से अपना हाथ छुड़ा चुकी थी। । एक लड़की का तो पूरा जीवन हालातों के साथ समायोजन में ही निकल जाता है।

अब तो वक़्त बहुत बदल गया है लड़कियों को भी पूरे अवसर मिलते है। पर हमारे जमाने में ऐसा नही था।जब छोटी थी तो सबकी तरह बहुत कुछ करने के सपने मन में पालती रहती थी। हमेशा  स्कूल कॉलेज के सभी कार्यकलापों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेती थी।  गाना गाना और नृत्य मेरा सबसे प्रिय शौक था। और पढ़ाई में भी अच्छी थी। इसी तरह कैसे बचपन और किशोरावस्था निकल गयी पता ही नही चला। फिर कॉलेज की पढ़ाई और वो सुनहरे दिन और कुछ करने की बलवती होती हुई इच्छा।

पढ़ाई लिखाई तो पूरी की। पर एक जिम्मेदार माँ बाप की तरह  मेरे मम्मी पापा ने पढ़ाई पूरी होते ही शादी कर दी। पर शादी के बाद किसी न किसी वजह से अपने उन सपनों के लिए कुछ नही कर पाई जो बचपन से बड़े होते हुए इन आँखों ने  देखे थे। पारिवारिक जिम्मेदारियों में घिरे घिरे ही वक़्त कैसे रेत  की तरह हाथ से फिसल गया पता ही नही चला।और मन की वो  कुछ करने की इच्छा मन में ही कही चिंगारी की तरह दबी रह गयी।  बीच बीच में कोशिश भी की अपने पंखों को उड़ान देने की पर हालातों ने  साथ नहीं दिया। और जब हालात अनुकूल हुए तो देखा कुछ करने की उम्र तो निकल ही चुकी।

मेरी अपनी ही डिग्रियां मुझे बस मुँह चिड़ा रही थी।  बस मन में मलाल रहने लगा कि व्यर्थ ये ज़िंदगी गँवा दी।  हालांकि बहुत कुछ पाया भी उसे देखकर खुश भी होती पर मन था की मानता ही नही था।  बस ऐसे ही क्षणों में में दिल के उद्गारों को कोरे कागज़ पर उकेरने लगी। डायरी के पन्ने  भरने लगे।

एक दिन मेरे बेटे ने अचानक उन्हें पढ़ा उसे वो अच्छी लगी।  उसने मेरा एक ब्लॉग बना दिया और मुझे उस पर लिखना सिखाया। बस फिर क्या था मैं  उस पर लिखने लगी। शुरू में कुछ परेशानी लगी पर धीरे धीरे अभ्यस्त हो गयी। बस यही मेरी ज़िंदगी का टर्निंग पॉइंट था। मुझे लगा मेरे सपनों को उड़ने के लिए आसमान मिल गया हो।

कहते है न की कोई काम पूरी शिद्दत के साथ करो तो सफलता अवश्य मिलती है।  कुछ ऐसा ही हुआ फेस बुक पर अलग २ साहित्यिक समूह से जुड़कर सीखा भी और वहां से मेरी अनेक रचनाओं को अनेकों सम्मान भी मिले जिन्होंने मेरा उत्साहवर्धन भी किया और मेरे हौंसलों को और बुलंद किया।  और ये सफर अब भी चल रहा है.. सच में मेरी तो ज़िंदगी ही बदल गयी।

डॉ अर्चना गुप्ता

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मुक्तक (53 )

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(157 )

वक़्त कहने को’ अपना गुजरता रहा है

रेत सा हाथ से ये खिसकता रहा है

देख पाते नहीं पर नजर में हैं’ उसके

हर घड़ी वक्त हमको परखता रहा है

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स्वप्न सजाकर आँखों में फिर आज सवेरा आया है

सूर्य नमस्कार किया हमने स्वास्थ्य लाभ कमाया है

सूरज लाल हुआ शर्मा कर नभ का भू से मिलन हुआ

इन सबके स्वागत को हमने दिल का हार बनाया है

(159 )

सदा हाथ सिर पर तुम्हारा रहा है

सिवा कौन तुम सा हमारा रहा है

तुम्हें साथ पाया सदा हर घड़ी में

हमेशा तुम्हारा सहारा रहा है

डॉ अर्चना गुप्ता