मुक्तक (23 )

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(67 )
तुमको मुहब्बत से कहाँ सम्वाद करना है

तुमसे बहस करना समय बरबाद करना है

तुमको समझ जब आयगी ये बात मेरी तो

उस वक्त तुमको बस मुझे ही याद करना है

(68 )

ये दिल सबकी खातिर दुखता  कब है

इस दिल में हर कोई बसता  कब है

टूट बिखर जाये इक बार ठसक से

कितना भी जोड़ो फिर जुड़ता कब है

(69 )           

आज करना चाँद मत कोंई बहाना

आज तुझको ही निहारेगा जमाना

सब दुआयें प्यार की स्वीकार कर के

बस ख़ुशी से साथ तू सबका निभाना

डॉ अर्चना गुप्ता


मुक्तक (22 )

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(64 )
जब भी खुद को गम में पाती दर्पण को आगे रखती हूँ

जब भी देखूँ मैं दर्पण में खुद से ही बातें करती हूँ

सच है अच्छा मीत न कोई खुद से ज्यादा होता जग में

चाहे कितनी भी पीड़ा हो हँस हँस कर खुद ही हरती हूँ

(65 )
भांप ले उनको दिलों में जो जहर रखते है

ताड़ने वाले क़यामत की नजर रखते हैं

है बड़ा मुश्किल छिपाना बात इनसे दिल की

चुप भले हों पर ज़माने की खबर रखते है

(66)

कल कल करती यूँ ही बहती मैं भावों की सरिता में

कूल मिला ना भटकी रहती मैं भावों की सरिता में

चैन गँवा दुख की लहरों में खो जाती हूँ जब प्रीतम

एक कहानी तुम से  कहती  मैं भावों की सरिता में

डॉ अर्चना गुप्ता

मुक्तक (21 )

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(61 )
खिली  ये चांदनी अब  भी हमें छूकर जलाती है

पिया तुम क्यों नही आते तुम्हारी याद आती हैै

तुम्हे चाहा सदा इस  जान से ज्यादा हमेशा ही

मगर ये  बेरुखी हर पल हमारा दिल दुखाती  है

 

(62 )
तुम साथ हो तो वक्त भी क्या खास होता है

वरना कदम भी मील का अहसास होता है

यादें सताती इस कदर तुमको बतायें क्या

तन्हाइयों में साथ का आभास होता है

(63 )
है नहीं मुमकिन कसम मैं तुम्हारी मान लूँ

यूँ बिछुड़ कर मैं तुम्हें मान अब अंजान लूँ

तुम गये तो ले गये प्राण मेरे साथ में

अब बताओ मौत को जिन्दगी क्या जान लूँ

डॉ अर्चना गुप्ता**********

मुक्तक (२० )

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(58 )

हमें बेटियाँ ये हँसाती बहुत है

ख़ुशी से सदा चहचहाती बहुत है

पलें गोद  में बन  हमारा जिगर पर

विदाई पे हमको रुलाती बहुत हैं

(59 )

वो हमें रोज  लोरी सुनाकर सुलाती है

दर्द सहकर सभी दुख हमारे मिटाती है      ै

रूप भगवान का है  छुपा  रूप में माँ के

हर समय साथ माँ ही हमारा निभाती है

 

(60 )
दिल दुखाती बड़ी ये खबर क्या करें

डबडबाती रही ये नज़र क्या करें

दामिनी कह रही वीर मेरे सुनो

ठूंठ से हम खड़े बन शज़र क्या करें

डॉ अर्चना गुप्ता *

 

 

मुक्तक (19 )

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(55 )
अब निकल ने लगा दम चले आइये

देख ने जो मिला गम  चले आइये

लौ बुझी जा रही ज़िन्दगी की सनम

फिर मिलेंगे नहीं हम चले आइये

(56 )

तेरी गली में पाँव रुक रुक  जाते हैं

छत पर नज़र दो नैन अब भी आते है

वो देखना  तेरा हमें यूँ छिप छिप कर

हम याद कर ये अश्क रोक नहीं पाते हैं

(57 )
अब  कभी हम ना चुभेंगे शूल से

देखना तुम आ मिलोगे कूल से

वक्त रहता है सदा  कब  एक  सा

एक दिन हम भी खिलेंगे फूल से

***डॉ अर्चना गुप्ता *************

 

मुक्तक (18 )

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(52 )
इक हाथ बढाओ तुम इक हाथ बदाये हम

कोई भी मौसम हो बस प्रीत सजाये हम

हो प्यार भरी बरखा लाये हम वो सावन

जीवन की बगिया मे मिल फूल खिलाये हम

(53 )

ना बात बढ़ाओ तुम ना बात बढ़ायें हम

सब छोड़ अहं अपने बस प्यार निभायें हम

अब भूल सभी अपने गुण दोषों को दोनों

इक सुन्दर सा अपना संसार सजायें हम

(54 )

कुछ शब्द सजाओ तुम कुछ शब्द सजायें हम

उन शब्दों को चुनकर इक गीत बनायें हम

फिर बहकर हम उसकी सुर संगम सरिता में

अपने इस जीवन को उस  पार लगायें हम

डॉ अर्चना गुप्ता 

 

मुक्तक (17 )

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(49 )
जिन्दगी ने किया किनारा है

आपने तब हमें पुकारा  है

अब भला क्या वफा निभायें हम

वक्त ये  आखिरी हमारा है

(50 )

ज़िन्दगी ने बहुत सजाया  है

हर कदम पर हमें हँसाया  है

हारने भी नहीं दिया हमको

जीतना ही हमें सिखाया है


(51)

ज़िन्दगी ने बहुत सताया है

हर कदम पर हमें रुलाया है

जीतने भी नहीं दिया हमको

हार का हार ही दिलाया है

डॉ अर्चना गुप्ता 

 

मुक्तक (16 )

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(46 )

जब भी तुम्हारे गम हमें आकर सताते हैं

आँसू हमारी आँख में मोती सजाते हैं

कैसे बतायें हाल दिल का तुम न समझोगे

हम दीप यादों के जला उत्सव मनाते हैं

(47 )

आँख में ही हमें आँसुओं को छुपाना है

वक्त बस यूँ तड़प कर हमें ये बिताना है

है सताती बहुत याद आकर तुम्हारी अब

और बाहर डराता हमें ये जमाना है

(48 )

अश्क़ ये छिप नैन में ही  छटपटाते हैं

पर तुम्हारे सामने हम मुस्कराते हैं

आह को हमने निकलने कब  दिया साथी

बस मिले ना गम तुम्हे हम ये जताते हैं

डॉ अर्चना गुप्ता            

 

मुक्तक (15 )

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(43 )

आराधना माँ की किया करते अगर

ना बेटियों के क़त्ल का रखते जिगर

यदि मान देते नारिओं को देश में

इन्सानियत की फिर  नहीं झुकती नज़र

(४४)

कर लो जय गर अपने मन पर छू लोगे ऊंचाईयाँ

कर लो मन को स्वच्छ तभी तो होंगी दूर बुराईयाँ

मुमकिन है अपने भारत को स्वच्छ बनाना दुनियाँ में

यदि हर हिन्दुस्तानी सोचे ना होंगी कठिनाईयाँ

(45 )

आवास वही रहता परिवार बदल जाते

मंच वही रहता है किरदार बदल जाते

बदले सूर्य न चाँद सितारे आकाश धरा

पर पीढ़ी दर पीढ़ी व्यवहार बदल जाते

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (14 )

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(40 )

प्यार हमसे जब किया फिर क्यूँ बनी ये दूरियाँ

जान लेते काश हम भी क्या   हुईं मजबूरियाँं

मानता ये मन नहींअब  लाख समझाऊँ इसे

तुम बता दो तोड़ देंगे पाँव की सब बेड़ियाँ

(41 )

लाल  कपड़े में बँधे  जो ख़त तुम्हारे

जान से भी कीमती है वो हमारे

पास अब तुम जब नहीं हो दूर हम से

आज जीने के बने हैं ये सहारे

(42 )

किताब में ख़त पाना याद है

गुलाब का खिल जाना  याद है

नज़र मिली  तुमको देखा वहाँ

जवाब में मुस्काना याद है

—-डॉ अर्चना गुप्ता ——