अभिनन्दन बहु का


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पल्लवित हो अपनी जननी के आँचल में

रोंपी गई हो अब अपने पिया के आँगन में
लेकर हज़ार सपने इन नयनों में
अभिनंदन तुम्हारा बहु इस घर में

खो गयी मै भी पल भर को उन्ही पलों में
जब रखा था पहला कदम इसी आँगन में
आज रख तुम पर अपना मै आशीष का हाथ
बाँटना चाहती हूँ कुछ अनुभव तुम्हारे साथ

कठिन है पले पौधे का  कही और रोपा जाना
करुँगी कोशिश पूरीमैं अच्छा माली बनना

नए घर नए रिश्तों से हुआ है तुम्हारा सामना
समर्पण से होगा तुम्हे भी इन सबको थामना

वादा है मेरा चाहे कैसी भी हो घडी
पाओगी मुझे अपने ही साथ खड़ी
न थोपूंगी तुम पर कोई बंधन न रस्मों रिवाज
पर अब तुम्ही हो इस कुल की लाज़

जब भी पाना खुद को किसी कश्मकश में
देख लेना रख खुद को उसी अक्स में
तभी पा सकोगी उसका सही हल
हो पाओगी इस जीवन में सफल

मेरे जीने की वजह है तुम्हारा हमसफ़र
संग तुम्हारे ही है उसकी खुशियां मगर
जुडी हैं उसकी साँसे भी मेरी साँसों से
मत रखना दूर उसको उसके इन अहसासों से

जुड़ जाना खुद भी उसके परिवार से
भर जायेगा मेरा दामन भी खुशियों से
बन सच्ची हमसफ़र उसका साथ निभाना
अपने जीवन के हर सपने को सच बनाना।

डॉ अर्चना गुप्ता

 

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Dr. Archana Gupta

Dr. Archana Gupta loves to give words to her thoughts in the form of poems, stories and articles. She is passionate about learning new things and admire the beauty of the world.

10 thoughts on “अभिनन्दन बहु का”

  1. Agar sab ki soch Aapki kavita se prabhabit ho jaye, to kabhi koi ladki dahej ke liye mari na jaye…

  2. Archana atti uttam .jo ham apni jaban se Nahi kah sake
    Vo tumne badi achi panktiyo me prastut kiya he .v good keep
    It up

  3. Itne khubsoorat khayalat ke liye bahot bahot mubarak bad. Aap ke man mein ek succha shair chhupa hua hai. Usey jagaiye. Aap bahot accha likh sakti hai. Koshish jari rakhiye.

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