मुक्तक (33 )

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(97 )

दर्द में हम मुस्कुराना जानते हैं

बन शमा खुद को जलाना जानते हैं

लाख दुश्मन हो भले सारा ज़माना

प्यार पर हम जां लुटाना जानते है

(98 )

तुम्हे पलकों पर मैं बिठाऊँगा

हथेली पर सरसों उगाऊँगा

मिलो मुझ को इक बार तो देखो

मुहब्बत के मोती लुटाऊँगा
(99)

वक्त पीछे गया रीत बाकी रही

हार की टीस में जीत बाकी रही

मुस्कुरा -मुस्कुरा कर चले वो गये

टूट नाता गया प्रीत बाकी रही

डॉ अर्चना गुप्ता

 

 

मुक्तक (32 )

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(94 )

कुटिल इन्सान कब होता कुटिल तो चाल होती है

बुराई देखकर इंसानियत बे हाल होती है

करो तुम नेह की बर्षा पिघल जाये कुटिल मन भी

भरा हो नेह दिल में तो मनुजता ढाल होती है

(95 )
वार हथोड़े के जब जब पड़ते है

हम सुन्दर मूरत को ही गढ़ते हैं

मत मारो हमको यूँ ठोकर प्यारे

पत्थर के देवों पर जल चढ़ते हैं

(96 )

सुहाने नज़ारे सुहाना सफ़र है

सजेंगे सितारे सभी को खबर है

ख़ुशी का खजाना लिये सन्त आया

सभो की टिकी आज उस पर नज़र है

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक ((31 )

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(91 )
प्यार में अब गुनगुनाना चाहता है

आज दिल तन्हा बिताना चाहता है

ये तुम्हारी याद के लेकर सहारे

इश्क़ में बस डूब जाना चाहता है

(92 )

यही प्रीत बनी जीत हमें आज मिले आप

सजे होंठ मधुर गीत हमें आज मिले आप

खिले फूल सजी सेज उगा चाँद दबे पाँव

ह्रदय झूम कहे मीत हमें आज मिले आप

(93 )

प्यार हो जाये कहाँ, कब जानते हैं

प्यार में है दर्द ये सब जानते है

पा लिया है साथ हमने आपका जब

प्यार है अनमोल हम अब जानते हैं

डॉ अर्चना गुप्ता

 

 

मुक्तक (30 )

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(88 )

अपनों से कब अधिकार मिला

दिल दर्द मिला कब प्यार मिला

सोने चाँदी की दुनियाँ में

बस जख्मों का उपहार मिला

(89)
वक्त की मार को कौन सह पाया है

दर्द अपने यहाँ कौन कह पाया है

तुम समझ लो मिली साँस गिनती की हैं

यूँ हमेशा यहाँ कौन रह पाया है

(90)
मौसम ने ऐसा वार किया

सर्दी में अत्याचार किया

रिमझिम रिमझिम मेघा बरसे

ठिठुरन से यूँ बेज़ार किया

 

डॉ अर्चना गुप्ता

 

 

 

मुक्तक (28)

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(82)

मन की  ख़ुशी कैसे मन  में समाये े

मोती ख़ुशी के नयन ने लुटाये

अभिमान मेरा तुम्ही तो हो  बच्चो       ै

तुमको नजर से  ये ईश्वर बचाये

(83)
कभी वो नाम देता है

कभी इल्ज़ाम देता है

अजब मेरा मसीहा है

कभी ईनाम देता है

(84)

धरा जल चाँद सूरज नभ हवा देता है

अगर हम हों गलत तब वो सजा देता है

निराले हैं बड़े अंदाज उस ईश्वर के

हमें यदि दर्द होता वो दवा देता है

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (29)

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(85 )

दोस्त जब बादलों को बनाया हमने

जो कलम ने लिखा वो सुनाया हमने

एक सैलाब सा आ गया धरती पर

‘अर्चना’ हाल जब भी बताया हमने

86 )

तन्हा हमारा दिल बिचारा हो गया

तुम से बिछुड़ना फिर गँवारा हो गया

परछाइया भी अब डराती हैं हमें

इन आँसुओं का ही सहारा हो गया

(87 )

लोग कहते चाँद में ये दाग है

चाँद ही दिल में लगाये आग है

चाँद सा मुखड़ा कहा , फिर दोष भी

इस जहाँ का भी अजब ये राग है
डॉ अर्चना गुप्ता

मुक्तक (27 )

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(79 )

जी रहे स्वप्न के गाँव में

आपके प्यार की छाँव में

जब मिले आपसे हम सजन

बज  उठी झांझरी पाँव में

(80 )
हंस की रात रानी सुनो

दो दिलों की कहानी सुनो

चाँद भी आज शरमा गया

हो गईं तुम दिवानी सुनो

(81 )

आसमां भी मुग्ध होकर इस धरा पर छा गया है

खूबसूरत सा समां ये आज दिल को भा गया है

झूमते से ये नज़ारे प्रेम दीवाने लगें अब

गीत गाने प्यार के जैसे समय खुद आ गया है

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (26 )

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(76 )
भ्रूण हत्या की खिलाफत हम सदा करते रहेंगे

बेटियों का हक़ दिलाने के लिए लड़ते रहेंगे

जन्म लेकर इस धरा पर जी रही हैं रोज  मर मर

कब तलक हम देख अत्याचार यूँ डरते रहेंगे

(77 )
माँ की अटकी सांस है

पुत्र मिलन की आस है

बेटे का कांधा मिल जाये

करती ये अरदास है

(78 )

जीवन की कैसी माया है

हर ओर अँधेरा छाया है

छोड़ गये सब संगी साथी

ये कैसा दिन अब आया है

******डॉ अर्चना गुप्ता *******

मुक्तक (25 )

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(73)

आज भी ये चाँद पूछे इस विरह में क्यों जले हम

क्यों न थामा हाथ जब थे  रात पूनम की मिले हम

हसरतें मन में रहीं हैं ख्वाब भी पलते रहे सब

मीत अब कैसे जियेंगे जब जमाने ने छले हम

(74)

पा लिया है प्यार हमने आपसे बस ये कहेंगे

हो ख़ुशी या गम सदा ही साथ मिलकर हम सहेंगे

जुड़ गया प्रिय प्रेम का अनमोल बंधन आपसे ही

अब बिछुड़ कर जिन्दगी भर हम  भला कैसे रहेंगे

75)
क़त्ल भी करते हो तो आँख  झुका लेते

इश्क का तुम भी ये क्या खूब मज़ा लेते

जान के भी सब कुछ तुम अंजान बने हो

हार के  दिल अपना हम  जीत मना लेते

 

डॉ अर्चना गुप्ता

मुक्तक (24)

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(70)
काँटा हूँ चुभता रहता हूँ

फूलों से कब कुछ कहता हूँ

आकर रस पी जाता भँवरा

बेबस हो मैं सब सहता हूँ

(71)

हाथ सर पर आपका जब से मिला हमको

ना रहा भगवान से कोई गिला हमको

मित्र भी हैं मार्गदर्शक भी हमारे हैं

कर्म का कोई मिला अच्छा सिला हमको

 

(72)
सब करें मिल सफाई चले आइये

दूर करने बुराई चले आइये

देश को स्वच्छ अपने सभी मिल करें

छोड़ अपनी लड़ाई चले आइये


डॉ अर्चना गुप्ता