ऐ नदी तू निरन्तर बहती ,
झेल दिन भर पाषाणों को
क्यूँ हुई इतनी पत्थर दिल सी।
देख इन मासूम चेहरों को ,
आत्मा तेरी तनिक ना हिली।
माना गलती थी मानव की ,
तो उन्ही को सजा दी होती।
क्या दोष था प्यारे बच्चों का …
क्या खेलने की सजा दी….
नादान होता है बचपन ,
यूँ ही कोई सजा दी होती।
पत्थरों से पटक पटक कर ,
जान तो ना ली होती।
ना जाता किसी आँख का नूर ,
कोई गोद ना सुनी होती।
क्या गलती थी
उन पालनहारों की।
बन छाया अपने लाल की ,
उनपर आंच ना आने दी।
जब थे वो नौनिहाल
तेरे आँचल में ,
तू इतनी बेबस बेजान क्यों थी।
आज हर दिल, हर मन है दुखी।
नम आँखों से देते श्रद्धांजली।
डॉ अर्चना गुप्ता
Profound! Poignant!!
बहुत बहुत शुक्रिया अमित जी।
माना गलती थी मानव की ,
तो उन्ही को सजा दी होती।
क्या दोष था प्यारे बच्चों का …
क्या खेलने की सजा दी….
नादान होता है बचपन ,
यूँ ही कोई सजा दी होती।
पत्थरों से पटक पटक कर ,
जान तो ना ली होती।
ना जाता किसी आँख का नूर ,
कोई गोद ना सुनी होती।
एकदम सटीक और दमदार शब्द डॉ . साहिबा
thanx