कुण्डलिनी छंद (२ )

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(4)
ऐसा कभी न सोचिये , सभी एक से होत

कुछ में तुम गुणवान हो ,कुछ में दूजे होत

कुछ में दूजे होत,खुदी को तुम पहचानो

क्षमता के अनुसार ,शक्ति की महिमा जान

 

(5)
घूमे पहिया वक्त का, असर उमर पे होय

पर टीका राखी वही , असर न उस पर कोय

असर न उस पर कोय, रहे वो साथ पुराना

धागा बाँधे बहन , प्यार का मिले खजाना

(6)
आज़ादी पाए हमें , बीते कितने साल

भूले सारे मूल्य हम ,मानवता बे हाल

मानवता बे हाल, रो रही भारत माता

उठो देश के वीर ,बनो तुम भाग्य विधाता

डॉ अर्चना गुप्ता

मुक्तक (५)

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१३।
चीर कर सीना नदी का रोज चलती नाव है

वार सह पतवार के फिर आप सहती घाव है

जानती है फर्ज अपना,काम अपना जानती

पार करती है सभी को ,तारना ही भाव है

 

१४।
जताना कर्म ही काफी नहीं है

सिखाना धर्म ही काफी नहीं है

अलख इन्सानियत की तुम जगाओ

ख़ुशी का मर्म ही काफी नहीं है

 

१५।
नफरत की लपटों  में  तुम जलते क्यों हो

गन्दी गलिओं में हर पल पलते क्यों हो

कब माने तुम अपनों का कहना बोलो

पछता कर हाथों को अब मलते क्यों हो

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (४ )

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१०।
समझ कर नासमझ तुझ को

किया गुमराह ही खुद को

असल था रूप वो तेरा

समझ कब आ सका मुझ को

डॉ अर्चना गुप्ता

११।
जाकर के परदेश हमें यूँ भूल न जाना

जीवन के रिश्तों को प्रियवर आप निभाना

करना अच्छे कर्म सदा अपने जीवन में

जग में प्यारे भारत का सम्मान बढ़ाना

१२।

दर्द गीत हो गये

शब्द मीत हो गये

नैन अश्रु से भरे

हार -जीत हो गये

 

डॉ अर्चना गुप्ता

मुक्तक (३)

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७।
पेड़ों पर झूले डोल गये
बातों का बस्ता खोल गये
पीहर  की बीती यादों को
आँखों के आँसूं बोल  गये  

८।

मौसम ने भी श्रृंगार किया
जीवन भी खुशगंवार किया
रिमझिम २ मेघा बरसे
हर प्रेमी मन गुंजार किया

९।

ना किसी का दास  होता
ना अकेला वास होता
मन ख़ुशी से झूम जाता
आज गर तू पास होता

डॉ अर्चना गुप्ता


मुक्तक (२)

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४.
शब्द से सौ – वार डरते घाव भी हैं

शब्द बन हथियार करते घाव भी हैं

टूट जाओ गर किसी की बात से तुम

शब्द बनकर प्यार भरते घाव भी हैं

५।

कोई दंश सर्प का झेल रहा

कोई सँग सुखों के खेल रहा

है कर्मों का सब लिखा प्रिये

कोई पास तो कोई फेल रहा

६।

जो पल गुजर गए मिलते फिर कहाँ

जो फूल गिर गए खिलते फिर कहाँ

ये सत्य है कहानी दिल से सुनो

जो दीप बुझ गये जलते फिर कहाँ

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (१ )

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१।
प्यार जब से मिला खिल कमल हो गए

नैन तुम से मिले फिर सजल हो गए

थे अधूरे बहुत हम तुम्हारे बिना

तुमसे मिलकर सनम हम गजल हो गये

२।

रिश्ता हमारा था पुराना याद कर

जब प्यार का गूंजा तराना याद कर

अब तक मिलन की याद से गुलज़ार दिल

भूला हुआ प्यारा जमाना याद कर

३।
दिलों से दूर रिश्तों का कभी मतलब नहीं होता

मुहब्बत का सुनो कोई  कभी मजहब नहीं होता

कभी तो हार पाकर भी ख़ुशी मिलती बहुत हमको

हमेशा जीतने को ही यहाँ ये सब नहीं होता

डॉ अर्चना गुप्ता 

पुनर्जन्म माँ का

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बेटे को देकर जन्म
बढ़ जाता है माँ का ओहदा
सबकी दृष्टि में
पर जन्म देकर बेटी को
भीग जाती है माँ खुद
सृजन की संतुष्टि में

बेटी की हर अदा हर मुस्कान
भर देती माँ को
भावनात्मक तृप्ति में
क्युंकि बेटी में देख अपनी छवि
भीग जाती यादों की वृष्टि में

उसके हर पल में घूम  लेती
अपने ही बचपन में
जो रह गए थे कुछ मलाल
जुटी रहती उनसे
बेटी को बचाने में
जो रह गए थे अधूरे ख्वाब
उन्हें पूरा करने में

चाहे दुःख हो चाहे सुख
रहती बेचैन
बेटी से साझा करने में
सहेली सी पा लेती है माँ
वयस्क होती बेटी में

उम्र के बढ़ते दौर में
अपना दिल टटोलती है
बेटी  के दिल में

सच है बेटी जनकर ही

माँ जी पाती है
दो जन्म
एक ही जन्म में …

डॉ अर्चना गुप्ता