नारी का मान -सम्मान

images (1)
आज नारी ने चाहे खुद को
कितना ही ऊपर उठाया
पुरुष प्रधान समाज में उस पर
अत्याचार कहाँ रुक पाया
नहीं ये दास्ताँ आज की

सदियों से यही होता आया ।

कौरवों की सभा में
जुआ खेला पुरुषों ने
सजा का हक़ केवल
द्रौपदी ने ही पाया
राम ने लेकर भी  अग्निपरीक्षा
सीता का ही
निष्कासन करवाया ।

देवी रूप में भले ही पुरुष
नारी को पूजता आया
पर राधा सी हठीली
लक्ष्मी सी चंचला या
काली सी रौद्ररूपा वाला
रूप उसे कभी न भाया ।

नारी को देकर भी आज़ादी
सिमटे ही रहने पर
मज़बूर करता आया
चुप करके उसे उसके
अस्तित्व से ही खेलता आया
तभी मधुमती ,गीतिका हो
या नैना साहनी सबने
अपना ही जीवन गंवाया ।

आज बदलते दौर में
जरुरत है सोच बदलने की
पुरुष के अंदर बैठे
अहंकार को तोड़ने की
अपने दम पर अपनी
मंज़िल तक पहुँचने की
तभी पा सकेगी अपना मनचाहा
पाकर मान सम्मान उसका
त्याग नहीं जायेगा जाया ।

डॉ अर्चना गुप्ता

रंग और बसंत

Basant-Panchmi-festival
पत्तों  की सर सर से
लगता है ऐसा
कि छेड़ी हवा ने
कोई जलतरंग ।

हवाओं से आती
प्यार की  खुशबू
मदहोश उसमे
हर मन सतरंग ।

बसंत की बहार
फूलों कि भरमार
बिखरी चंहुओर
मीठी मीठी सुगंध ।

महकी फ़िज़ायें
अमवा बौराये
सुन कोयल की कुहू
थिरके अंग अंग ।

होली की  बेला
हर कोई खेला
रंगों का खेल
रंगों के संग ।

अपनी ही मस्ती
अपनी ही धुन
भूल सब गम
हर ओर  हुड़दंग।

जी ले मुसाफिर
हर पल को जीभर
दिन ज़िंदगानी के
मिले हैं चंद ।

डॉ अर्चना गुप्ता

सपने का सफ़र

images (7)
बंद आँखों की डिबिया से
एक सपने ने देखा झांक कर
फिर रोका अपने कदमों को
घना  अंधकार  देखकर
बाहर निकलने को
वो सपना आतुर था
असर ना उस पर मन के
समझाने  का था

वो तो बस मचल पड़ा
दहलीज़ आँखों की
पार कर डरते डरते
बाहर निकल पड़ा
जुबां नहीं थी  उसकी
पर अरमान तो थे
खुला आसमान ऊपर
हौंसले बुलंदी पर  थे

राह में मुश्किलें भी कुछ
कम नही आई उस पर
कभी अपनों ने कभी गैरों ने
खूब सितम किये उस पर
राह में उसके कई जगह
पैरों में हुई कुछ जलन
वो थी कुछ सपनों के
आत्मदाह की ही अगन

पर हुआ ना वो विचलित
रहा अपने पथ पर अढिग
कुछ नए सृजन की आद्रता से
कुछ कृत संकल्प की ऊष्मा से
सपने के बीज बीजित हुए
सपना पूरा करने को
बादल भी जैसे बरस गए।

-डॉ अर्चना गुप्ता

हम और तुम

429813712_5619932ff0
चांदनी रात में

तुम कहीं हम कहीं
पर रुपहली चांदनी
दोनों के पास वही

रिमझिम बरसात में
हम दोनों साथ नहीं
पहले बरसात की खुशबू
दोनों के पास वही

इन गहरी तन्हाइयों में
मन भटके चाहे भी कहीं
पर यादों का समुंदर
दोनों के पास वही

दुनिया की भूल भुलैया में
छूटा हमारा हाथ कहीं
फिर मिलने के सरगोशी

दोनों के पास वही

फिर इस जन्म में
हम मिले ना मिले कभी
पर वो प्यार हमारा
दोनों के पास वही

डॉ अर्चना गुप्ता

पत्थर दिल

images (1)

लोग कहते हैं मुझे पत्थर दिल

जिन्दा तो हूँ पर जीवन रहित

अब ये सच लगता है मुझे भी

डरने लगी हूँ अपनी ही परछाई से भी

 

टकरा कर छोटे बड़े पाषाणों से

पत्थर सा दिखने लगा है ये तन

खाकर इनसे ठोकरें बार बार

टूट सा गया है ये मन

 

 

पर सच तो है ये भी

न हो भले ही पत्थर में जीवन

पर टकराते है जब वो आपस में

दे देते हैं संगीतमय तरंग

 

तराशे जाते हैं

जब सधे हाथों से

भर जाता है सौंदर्य से

इनका कण कण

 

हाँ मैं भी हूँ ऐसी ही पत्थर दिल

जिसमें प्राण भी है और जीवन भी

संगीत भी है और सौंदर्य भी

बस तराशने वाला कोई जाये मिल

– डॉ अर्चना गुप्ता

रिश्ता माँ बेटी का

images (4)
खुद माँ बन कर  जाना
माँ होने का अहसास
माँ और ज्यादा तुझसे
मेरा रिश्ता हुआ खास

दिल की ख़ुशी अपनी
कैसे बयां करू आज
पंख मिल गए हो जैसे
और उड़ने को पूरा आकाश

सोती नहीं जब रातों में
आँख भर आती ये सोचकर
मेरे लिए तू भी ऐसे ही
जागी  होगी रात रात भर

तडप जाती हूँ जब मै
इसकी जरा सी पीड़ा पर
जान पाती हूँ क्या बीती होगी
उस समय तुझ पर

जब जब जिस  जिस
अहसास  को जीती हूँ
तेरे और भी ज्यादा
मै करीब होती हूँ

तेरे हर  त्याग को अब
और जान सकी हूँ
क्या होती है माँ ये
और पहचान सकी हूँ

एक माँ बच्चे को
अपने  खून से सींचती है
बड़ी तपस्या से उसको
वो  पालती पोसती  है

उसके लिए जीती है
उसके लिए हंसती है
उसके लिए गाती है
उसके लिए रोती  है

अब जान सकी
क्यों कहते हैबेटी
माँ बाप केज्यादा
करीब होती है

-डॉ अर्चना गुप्ता

आज की नारी

images (3)

आज  नारी  अबला से सबला बन
नवभारत की अलख जगा रही ।
अग्रणी बन हर क्षेत्र में
जीत का परचम लहरा रही ।

आँखों में सफलता की अनोखी चमक
आँचल में भारत का स्वर्णिम भविष्य
उत्तम परवरिश से सक्षम
राष्ट्र निर्माता बना रही ।

जहाँ होती इसकी देवी रूप में अर्चना
वह आज स्वयं को सशक्त बना
एक नहीं अनेक जिम्मेदारी
बखूबी निभा रही ।

न वो है पुरुष से उच्च
न वो है पुरुष से तुच्छ
वो तो पुरुष के होकर हमकदम
सम्पूर्णता का अपनी अहसास करा रही ।

– डॉ अर्चना गुप्ता

माँ

download (1)

मुझे माँ इतिहास की
पुस्तक सी लगती है
उसके चेहरे की हर झुर्री
एक एक पन्ना सा लगती है
कितनी ही बार पढ़ लू उसे
मेरी लालसा ही नहीं भरती  है

आज फिर उलझ गयी उन्ही पन्नो में
बचपन से अब तक के पलों में
पढ़ने लगी फिर माँ को
उन्ही झुर्रियों वाली लकीरों में

दिखाई देने लगी मुझेअपनी पुरानी माँ
पुराने बड़े घर मेंहिरनी सी कूदती माँ
कभी खाना बनातीकभी कपड़े धोती माँ
घर को घर बनतीहर दम व्यस्त माँ
कभी डांटती कभीलाड लड़ाती माँ

सजती संवरतीचूड़ी खनखनाती माँ
ना पढ़ने पर  डांट लगाती
अच्छे नम्बरों पर लड्डू बांटती माँ
हम कुछ बन जाएँये सपना बुनती माँ
घर की खुशियों के लिएअपनी
इच्छाओं की तिलांजलि देती माँ

पापा के संगकदम से कदम
मिलाकर चलती माँ
लायक बच्चों के बीच
गर्वान्वित सी खड़ी  माँ
पापा से बिछड़ने पर
आंसू भरी सूनी सूनी
आँखों वाली माँ

वक़्त के साथ कमजोर होती
रुपहली लटों वाली माँ
तन कर चलने वाली अब
घुटने पकड़कर चलती माँ
अपनों के बीच भी कुछ
अकेली अकेली सी माँ
चुप  चुप रहती आँखें मूंदे
ईश्वरको याद करती माँ

पता नहीं कितने
पन्ने  हैंशेष अभी
खो ना दूँ मैइन्हे कही
दौड़ कर समा गयी
उनकी बाँहों में
छुपा कर  अपना चेहरा
उनके आँचल में ।

– डॉ अर्चना गुप्ता