श्रद्धा और आनंद से परिपूर्ण एक यात्रा

Badrinath
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घूमना मुझे शुरू से ही अच्छा लगता है । और छुट्टियों में प्रोग्राम भी बनाते हैं । पर एक सपना रहा कि कभी बद्रीनाथ केदारनाथ जी के लिए प्लान करूँ ।एक तरफ नदी , एक तरफ पहाड़, पहाड़ों से फूटते झरने, बड़े बड़े पत्थर, ग्लेशियर, कल कल की पानी की आवाज , ये सब सोचकर ही रोमांच सा हो जाता है । इसलिए इस बार प्लान कर ही लिया कि बद्रीनात केदारनाथ जाना है ।

इसके लिए इंनोवा बुक की है 7-8 दिन के लिए ।घर से सीधे हरिद्वार जाएंगे ।वहां हर की पैड़ी पर स्नान करके मनसा देवी और चण्डी देवी के दर्शन करेंगे । शाम की आरती देखकर रात को वहीँ रूककर सुबह बदरीनाथ के लिए रवाना होंगे ।

रास्ते में देवप्रयाग रुद्रप्रयाग आदि के दर्शन करते हुए नदियों पहाड़ों का लुत्फ़ उठाते हुए बद्रीनाथ पहुंचेंगे ।रजिस्ट्रेशन पहले ही ओन लाइन करवा लेंगे ताकि परेशानी न हो । रात को बदरीनाथ जी की आरती देखेंगे । और होटल चले जाएंगे जो पहले से ही बुक किया हुआ होगा । अगले दिन सुबह 4 बजे कुण्ड में स्नान करने जाएंगे । बहुत सुना है इस कुण्ड के बारे में । अगर कच्चे चावलों की पोटली इसमें डाल दो तो कुछ देर में चावल पक जाते हैं । इतना गर्म होता है पानी यहाँ का । सच में कितना आनंद आएगा इतने गर्म कुण्ड में स्नान करने में । इसके बाद फिर सुबह की आरती देखेंगे । बाजार में घूमेंगे । फिर शाम की आरती देखेंगे और रात में वही रूककर अगले दिन सुबह माना गॉंव के लिए निकलेंगे ।

माना गॉंव सुना है हमारे देश का आखिरी गॉंव है । देश की सीमा और ये माना गॉंव देखना वाकई अप्रतिम अनुभव होगा ।सरस्वती नदी का उद्गम भी यही से हुआ है । देश की सीमा पर आखिरी गॉंव की आखिरी दूकान पर बैठकर चाय पीना एक अनोखा अनुभव होगा ।

कुछ देर वहां रुककर चल पड़ेंगे केदारनाथ की ओर । यहाँ हम हेलीकाप्टर सेवा का उपयोग करेंगे । इसके लिए भी बुकिंग हम पहले से ही करवा लेंगे । हमें बस गाडी से वहां पहुंचना होगा जहाँ पर हेलिकप्टर सेवा उपलब्ध होगी । वहां पर रहने खाने की व्यवस्था भी यही से ऑन लाइन पहले ही करवा देंगे । सुना है वहां पर टेंट की व्यवस्था होती है जिसमे बढ़िया होटलों वाली सारी सुविधाएं होती हैं । कितना रोमांचक होगा न ऐसी जगह पर रुकना और प्रक्रति को इतने करीब से देखना ।

रात यही बिताकर अगले दिन सवेरे ही निकल पड़ेंगे केदारनाथ जी के लिए हेलीकाप्टर से ।सबसे पहले तो हेलीकाप्टर में बैठना और वो भी इतने ऊँचे ऊँचे पहाड़ों के बीच में से निकलकर , ये सब सोचकर ही उत्साहित हूँ । फिर वहां पहुँच कर बाबा केदारनाथ जी के दर्शन करेंगे । 5-6 घंटे वही रूककर प्रकृति का आनंद लेंगे । फिर हेलीकाप्टर से वापस टेंट आ जायेंगे । वहां लंच लेकर फिर उतरने की तैयारी ।और फिर सीधे हरिद्वार । गंगा जी में नहाकर वहां रुकेंगे और अगले दिन वहां से चलकर अपने घर वापस ।

ये है मेरा ड्रीम वेकेशन प्लान । जिसे सोचकर ही इतना उत्साहित हूँ तो सोचिये वहां जाकर क्या होगा । निश्चित तौर पर अनगिनत प्यारी प्यारी यादें लेकर लौटूंगी मैं वहां से ।

जल्दी और आसानी से होटल और टिकट बुक करने के लिए यात्रा की वेबसाइट पर जाकर बुकिंग करा सकते हैं। फ्लाइट की टिकट कराने के लिए Domestic Airlines पर जाकर बुकिंग करा सकते हैं।

वास्तविक साथ

जीवन के हर मोड़ पर हमें किसी न किसी का साथ चाहिए ही होता है । आज की स्तिथि यह है कि हर कोई पैसे और कैरियर के लिए भागता ही जा रहा है । नेट मोबाइल टीवी ने सभी को घर के अंदर बंद कर दिया है । सब अपने में ही रहते हैं । अगर कोई साथी है तो बस मोबाइल और नेट । ये स्तिथि हमें अवसाद की तरफ ले जा रही है । क्योंकि दोस्तीऔर  रिश्ते  तो अब न के बराबर है और साथ है तो एक आभासी दुनिया का जिससे हमें इंटरनेट मिलवाता है । परंतु ये वो साथ कहाँ जो हमें आंतरिक ख़ुशी और सुख दे । हमारे ग़मों को बांटे खुशियों में हंसे ।

ऐसे ही एक सज्जन जो सेवानिवृत हो चुके थे हमारे सामने के पार्क में रोज बैठे रहते थे । उनके बच्चों के पास समय ही नहीं था और उन्हें इंटरनेट आता नही था । क्या करते बस पार्क में बैठे रहते । बच्चों को खेलते देखते कभी फूलों और पेड़ों को । लगता जैसे उनसे ही मन की बात कर रहे हों । कुछ दिन बाद देखा उस बेंच पर एक और सज्जन उनके साथ बैठे थे । दोनों में दोस्ती हो गयी । अब वो हँसने भी लगे थे । धीरे 2 देखा वो 2 से 3 फिर 3 से 4 ऐसे करतेकरते 8-10 लोगों का ग्रुप बन गया । उनमे से एक योग एक्सपर्ट थे वो सबको योग भी सिखाने लगे । करीब 1 महीने के समय में ही एक दूसरे में वो सभी इतने मिल गए कि लगता ही नहीं था कभी ये सब अजनबी थे ।

अगर बारिश भी आ जाए तब भी मैंने सबको छाता लगाकर आते हुए देखा । शायद इनका आपसी साथ उन्हें अंदर तक ख़ुशी देता था । वो पार्क पहले बहुत उबड़ खाबड़ सा था । उन लोगों ने उसे ठीक करने का बीड़ा उठाया । एक माली लगाया और खुद भी उसे ठीक करने में लग गए । उन्हें देखकर पार्क में खेलने वाले बच्चे भी उनका साथ देने लगे । पार्क तो चमकने लगा । बच्चे भी उनसे घुलमिल जाने के कारण योग भी करने लगे । सुबह सूरज निकलने से पहले ही बच्चे उठ जाते और पार्क की तरफ भागते । उगते सूर्य को प्रणाम करते योग करते फिर स्कूल जाने के लिए घरजाते । घर में माँ बाप हैरान बच्चों में ये परिवर्तन देखकर उन्होंने भी पार्क में आना शुरू कर दिया । बहुत ही खूबसूरत नज़ारा हर उम्र के लोग एक साथ एक दूसरे का लुत्फ़ उठाते हुए खिलखिलाते हुए ।

सुबह का ये एक घंटा ऐसा होता था जब न तो कोई फ़ोन होता था न नेट न ऐसी न बिस्तर ।बस साथ था लोगों का और प्रकृति का । और जिस साथ से हमें सुकून मिलता है वही होता है वास्तविक साथ।

किसान ने बहुत अच्छा चित्रण किया है कि कैसे प्रकृति वास्तविक साथ पाने में सहायक हो सकती है –

किसान के इस कैंपेन के बारे में अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर जाएँ : http://www.kissanpur.com/

खूबसूरत ज़िन्दगी की खुशनुमा सुबह

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ज़िंदगी एक ऐसा सफर है जहां तरह तरह के अनुभव रोज ही होते रहते है। कभी ज़िंदगी बहुत खुशनुमा लगती है तो कभी ग़मों से बोझिल सी लगती है। अक्सर यही होता है कि हम दुःख के समय में नकारात्मकता से भर जाते है।  हर चीज़ हमें ख़राब ही लगती है।  ऐसे में बहुत सी घटनाएँ ऐसी दिख जाती है जो हमारे अंदर उत्साह भर देती हैं।

मेरा एक शौक बहुत पुराना  है कि  मै रोज सबह की सैर का आनंद लेती हूँ। आसमान  से ,पेड पौधों से ,चिड़ियों से बातें करना मुझे बहुत अच्छा लगता है। सैर करते हुए कुछ दृश्य मै रोज देखती हु जिन्हे देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता है और मुझे अपूर्व शान्ति मिलती है।

एक जोड़ा जो करीबन ७५  साल के आसपास का होगा रोज टहलने के लिए आता है। ये बुजुर्ग दम्पति धीरे धीरे डग भरते हुए चलते है। शायद आंटी के पैरों में दर्द रहता है।  अंकल उनका हाथ पकड़कर उनके साथ ही चलते हैं।  बीच बीच में डिवाइडर पर दोनों बैठ जाते हैं।  अंकल हाथ में ली बोतल से उन्हें पानी पिलाते हैं और फिर दोनों चल पड़ते हैं।

मै भी उनसे आगे बढ  जाती हूँ।  और जब लौटती हहूँ तो उन्हें एक मंदिर के आगे आपस में बातें करता हुआ  पाती हूँ। मै भी मंदिर में हाथ जोड़ती हूँ तो देखती हूँ अंकल बड़े प्यार से आंटी को उठा रहे है हैं और फिर दोनों चल पड़ते हैं साथ साथ। सच में बहुत अच्छा लगता है इतनी उम्र में भी उनका इतना प्यार देखकर। ये सब देखकर मुझमे एक नयी ऊर्जा और सकारात्मकता भर जाती  है कि सालों  बाद भी प्यार रहता है। घटता नही बल्कि बहुत ज्यादा बढ़ जाता है।

ऐसे ही रास्ते में एक पार्क पड़ता है जिसमे १०-१५ लोग जो शायद रिटायर हो चुके है, बैठे मिलते हैं। वो लोग मिलकर योग करते है तालियां बजाते है और जोर जोर से ठहाके लगाकर हास्य आसान करते हैं। परिचर्चा भी करते है नए नए विषयों पर। राजनीती पर बहस भी करते है। एक दिन तो मेने उन लोगो को कविता पाठ करते हुए देखा।  सब बड़े ही मनोयोग से सुन रहे थे।

मुझे बड़ा अच्छा लगा ये सब देखकर।  प्रेरणा भी मिली कि इंसान को कभी भी ये सोचकर नही बैठ जाना चाहिए की अब की क्या रखा है ज़िंदगी में। अब तो सारे काम ख़त्म हो गए बस राम नाम जपो। बल्कि अपनी  इच्छा और शौक पुरे करने चाहिए।  अपने ही हमउम्र लोगों के साथ बैठकर अपना मनोरंजन करना चाहिए।  ज़िंदगी के हर पल को ख़ुशी से बिताना चाहिए।

इस तरह से रोज मेरी सैर में शारीरिक स्वास्थ्य के साथ साथ मानसिक स्वास्थ्य भी अच्छा बना रहता है और मुझे सकारात्मक ऊर्जा भी मिल जाती है और  मुझे अभूतपूर्व शांति का अनुभव होता है। ये रोज़ का ही घटनाक्रम है।

डॉ अर्चना गुप्ता

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दोस्तों के साथ कुछ अनमोल पल

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जो क्षण हम जी रहे होते हैं वो उस समय हमारे लिए अत्यंत साधारण होते हैं पर वही क्षण विगत होते ही हमारे लिए असाधारण बन जाते हैं। और यही प्रक्रिया सतत चलती रहती है। इसी तरह जीवन भी व्यतीत होता चला जाता है। जो खुद बच्चे होते हैं वो वक़्त के साथ साथ खुद माता पिता बन जाते हैं और और अपने बच्चों के बचपन में अपना बचपन जी लेते हैं।

पर बचपन के सभी साथी मित्र स्कूल जीवन पर्यन्त याद रहते हैं चाहे वो हमसे कोसों दूर हो। जब कभी वक़्त मिलता है या तन्हाई होती है यादों के मेले सज ज़ाते हैं। और हम उस मेले में कहीं खो से जाते हैं।

ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ। जीवन की जिम्मेदारिया संभालते सँभालते उन पलों को भी जेहन में समेटते समेटते वक़्त अपनी तेजी से बढ़ रहा था । और जब इन सबसे निवृत हुई तो अपने जीवन के ४० बसंत पार कर चुकी थी। खाली वक़्त काटने की ग़रज़ से नेट की दुनिया से दोस्ती करली।

ये नेट मेरा पहला एक ऐसा दोस्त मिला जिसके पास मुझे देने के लिए बहुत कुछ था। ज्ञान के साथ साथ मनोरंजन भी। एक सच्चा साथी। जिसने मेरे खालीपन को काफी हद तक भर दिया। परन्तु ये तो मेरा इतना अच्छा दोस्त साबित हुआ की इसने मुझे बचपन के बिछड़े साथियों से भी मिला दिया। इस तरह मुझे बचपन का अनमोल खज़ाना मिल गया।

अपने पुराने दोस्तों सहेलियों से मिलकर तो खुशियों की कोई थाह ही नही थी। लग रहा था जैसे हम सभी उम्र के सोलहवें पड़ाव में पहुँच गए हो। खूब बातें करना हंसना एक दूसरे के बारे में जानने की उत्सुकता बस ख़ुशी ही ख़ुशी। पर मन आकाश तो अनंत है।ये कब पूरा होता है। अब मिलने की इच्छा जोर मारने लगी। अंत में नॉएडा सेंटर प्लेस होने के कारण वहां GIP मॉल में मिलने का एक कार्यक्रम तय किया गया।

बहुत उत्साहित थे हम सभी। बस आँखों में एक कल्पना की कैसा लगेगा जब इतने सालों के बाद मिलेंगे। पर जब मिले तो ऐसा लगा ही नही की २५ साल के लम्बे अंतराल के बाद मिल रहे हैं। वही शरारतें वही चपलता वही ठहाके। मन इतना हल्का की खुद के अंदर ढूंढने से भी नही महसूस हो रहा था। लग रहा था पता नही कितनी ऊर्जा अपने अंदर भर गयी है। उम्र तो डरकर भागकर एक ओर जाकर खड़ी हो गयी थी। वो ४-५ घंटे का समय हम सभी के लिए अविस्मरणीय समय था।
इस मुलाकात ने कितना सकारात्मक प्रभाव मझपर डाला था ये मेरे लिए शब्दों में बताना नामुमकिन है। फिर हम एक दूसरे से विदा हुए फिर मिलने का वादा लेकर। पर ये साथ ये मिलन हमारे लिए खुशियों का अथाह सागर लेकर आया था।

डॉ अर्चना गुप्ता

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और उड़ने को आसमान मिल गया

 

Image Source Flickr here: https://www.flickr.com/photos/stuant63/3443129398/
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सुना था ज़िंदगी कभी खत्म नही होती। हमेशा अवसर देती रहती है।  पर तब मुझे ये सब बातें खोखली सी लगती थी जब मैं अपनी जिम्मेदारियों से निवृत हो खाली खड़ी थी। उम्र मेरे हाथ से अपना हाथ छुड़ा चुकी थी। । एक लड़की का तो पूरा जीवन हालातों के साथ समायोजन में ही निकल जाता है।

अब तो वक़्त बहुत बदल गया है लड़कियों को भी पूरे अवसर मिलते है। पर हमारे जमाने में ऐसा नही था।जब छोटी थी तो सबकी तरह बहुत कुछ करने के सपने मन में पालती रहती थी। हमेशा  स्कूल कॉलेज के सभी कार्यकलापों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेती थी।  गाना गाना और नृत्य मेरा सबसे प्रिय शौक था। और पढ़ाई में भी अच्छी थी। इसी तरह कैसे बचपन और किशोरावस्था निकल गयी पता ही नही चला। फिर कॉलेज की पढ़ाई और वो सुनहरे दिन और कुछ करने की बलवती होती हुई इच्छा।

पढ़ाई लिखाई तो पूरी की। पर एक जिम्मेदार माँ बाप की तरह  मेरे मम्मी पापा ने पढ़ाई पूरी होते ही शादी कर दी। पर शादी के बाद किसी न किसी वजह से अपने उन सपनों के लिए कुछ नही कर पाई जो बचपन से बड़े होते हुए इन आँखों ने  देखे थे। पारिवारिक जिम्मेदारियों में घिरे घिरे ही वक़्त कैसे रेत  की तरह हाथ से फिसल गया पता ही नही चला।और मन की वो  कुछ करने की इच्छा मन में ही कही चिंगारी की तरह दबी रह गयी।  बीच बीच में कोशिश भी की अपने पंखों को उड़ान देने की पर हालातों ने  साथ नहीं दिया। और जब हालात अनुकूल हुए तो देखा कुछ करने की उम्र तो निकल ही चुकी।

मेरी अपनी ही डिग्रियां मुझे बस मुँह चिड़ा रही थी।  बस मन में मलाल रहने लगा कि व्यर्थ ये ज़िंदगी गँवा दी।  हालांकि बहुत कुछ पाया भी उसे देखकर खुश भी होती पर मन था की मानता ही नही था।  बस ऐसे ही क्षणों में में दिल के उद्गारों को कोरे कागज़ पर उकेरने लगी। डायरी के पन्ने  भरने लगे।

एक दिन मेरे बेटे ने अचानक उन्हें पढ़ा उसे वो अच्छी लगी।  उसने मेरा एक ब्लॉग बना दिया और मुझे उस पर लिखना सिखाया। बस फिर क्या था मैं  उस पर लिखने लगी। शुरू में कुछ परेशानी लगी पर धीरे धीरे अभ्यस्त हो गयी। बस यही मेरी ज़िंदगी का टर्निंग पॉइंट था। मुझे लगा मेरे सपनों को उड़ने के लिए आसमान मिल गया हो।

कहते है न की कोई काम पूरी शिद्दत के साथ करो तो सफलता अवश्य मिलती है।  कुछ ऐसा ही हुआ फेस बुक पर अलग २ साहित्यिक समूह से जुड़कर सीखा भी और वहां से मेरी अनेक रचनाओं को अनेकों सम्मान भी मिले जिन्होंने मेरा उत्साहवर्धन भी किया और मेरे हौंसलों को और बुलंद किया।  और ये सफर अब भी चल रहा है.. सच में मेरी तो ज़िंदगी ही बदल गयी।

डॉ अर्चना गुप्ता

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मुझे मनुष्य नहीं कुत्ता बनाना

 


सुबह की सैर भी  कमाल की होती है।  सब ओर खुशनुमा सा वातावरण।  सूरज की तलाश मे नया २ जन्म लेता सवेरा  उसकी किरणों को अपनी बाँहों मे लेने को आतुर सा। अंगड़ाई सी लेते अभी अभी सोकर उठें पेङ ,पौधे ,फूल पत्ते । चहचहाते पक्षी और कोयल की कुहू कुहू का  मधुर स्वर। कहीं मंदिर से आती घंटों की आवाज। मंद मंद चलती उन्मुक्त पवन। ये सब जैसे मन में नई स्फूर्ति और चेतना का प्रवाह कर देते  है। रोज मैं   नये नये अनुभव लेते हुए इन सब का आनन्द उठाती हूँ। बहुत लोगों से भी मिलना होता है। कोई दौड़ लगा रहा होता है , कोई कानोँ  मे ईयरफोनलगाये  हुए अपनी ही धुन मे चला जा रहा होता है। कुछ समूह में राजनीतिक वार्तालाप करते हुए होते है,  लेडीज घर गृहस्थी की बाते करते हुए,  कुछ औरोँ की बगिया से चुपके  से पुष्प तोड़ते   हुए ,तो लड़के सलमान खान बनने की धुन मे व्यायाम करते हुए।  मुझे बड़ा ही मज़ा आता है ये सब देखने मे।।मैं सैर करती रहती हूँ और मेरे साथ साथ चलते हैं अनगिनत विचार। कभी २ ऐसे विचार भी होतें हैं कि खुद ही मन ही मन मुस्कुरा उठतीं हुँ और कभी यही विचार कुछ सोचने के लिये भी मज़बूर कर देते हैं। एक ऐसी ही घटना और विचार से आपको वाकिफ कराना  चाहतीं हूँ ।

कुछ लोग अपने लाड़ प्यार से पाले  डॉगी को  भी साथ लेकर घूमते हैँ।  जब उन डॉगीज़  को देखती हूँ तो  लगता है ये भी कुछ हमारी तरह ही सोचते हैं और आपस में बातें करते हैं। जब अपने मालिक के साथ गर्व से चलता हुआ जंज़ीर से बंधा नवाबी डॉगी जब स्ट्रीट डॉग से मिलता  है तो उसकी आँखों मे मनुष्य की भांति ही गर्व सा दिखता है जैसे हुं, तुम कहाँ हम कहाँ। और स्ट्रीट डॉग भी उसे यूँ देखता है मानो कह रहा हो, क्या  किस्मत पाई है इसने, क्या ठाट है इसके, क़ाश हमारे भी  कर्म  बढ़िया होते तो हम भी  ऐसे हीं  आलिशान बंगलें मे पल रहे होते ।अक्सर स्ट्रीट डॉगी इकट्ठे होकर  किसी नवाबी डॉग  को देखकर उस पर सम्मिलित   स्वर मेँ भोंकना शुरु कर देते हैं, मानो अपना फ़्रस्टेशन निकाल रहे हों कि  बड़ा आया नवाब कहीं का। फिर तो उसे बचाने में मालिक के भी पसीने छूट जाते हैं।  कभी कभी  नवाबी डॉगी स्ट्रीट डॉग से खेलना भी चाहता है पर मालिक  की डांट  खाकर हट जाता है मानो समझ गया हो कि अपने स्तर के लोगों मे उठो बैठो।

कल एक ७-८ साल के बच्चे को कूड़े के ढ़ेर पर बैठें देखा। कुछ बीन रहा था।  शायद भूखा भी  था क्योकि   उसमेँ से कुछ बीन बीन कर खा भी  रहा था। तभी एक नवाबी डॉगी भी वहां आकर कुछ सूंघने लगा। मालिक ने कस कर डांटा ,नो बेबी ये गन्दा है चलो यहॉँ से और जेब से डॉगी स्पेशल बिस्कुट उसको खिला दिये।  डॉगी तो चला गया वहां से पर वो बच्चा सूनी सूनी आँखों से देखता रहा उसे जाते हुए ,मानो कह रहा हो काश में कुत्ता होता।।या सोच रहा हो  नहीं चाहिए ये मनुष्य योनि, मुझे तो कुत्ता ही बनाना ऐसा वाला।  फिर लग गया वो बीनकर कुछ खाने मे।किंकर्तव्यविमूढ़ सी मै घर वापस  आ गयी लेकिन सोचती रह गयी क्या है ये ज़िंदगी ?????????