(82)
मन की ख़ुशी कैसे मन में समाये े
मोती ख़ुशी के नयन ने लुटाये
अभिमान मेरा तुम्ही तो हो बच्चो ै
तुमको नजर से ये ईश्वर बचाये
(83)
कभी वो नाम देता है
कभी इल्ज़ाम देता है
अजब मेरा मसीहा है
कभी ईनाम देता है
(84)
धरा जल चाँद सूरज नभ हवा देता है
अगर हम हों गलत तब वो सजा देता है
निराले हैं बड़े अंदाज उस ईश्वर के
हमें यदि दर्द होता वो दवा देता है
डॉ अर्चना गुप्ता