(118 )
जुल्मी घटा घिरी है कितना हमें डराये
अब आँख से हमारी सावन बरस न जाये
नित रोज ही बहाने करते नये नये तुम
हम प्यार ये तुम्हारा बिल्कुल समझ न पाये
(119 )
बस याद हमको आपकी नादानियाँ रहीं
लब चुप रहे पर बोलती खामोशियाँ रहीं
हमने हजारों दीप यादों के जला लिये
चाहे ज़माने की लगी पाबंदियाँ रहीं
डॉ अर्चना गुप्ता
(120 )
जब भी कभी डिगे पग ,पथ आपने दिखाया
हर हौंसला बढ़ाकर ,आगे हमें बढ़ाया
जब टूटकर बिखर कर ,बरबाद हो रहे थे
तब ज़िन्दगी से हमको ,था आपने मिलाया
डॉ अर्चना गुप्ता