(178 )
पावन जल कम हो रहा, देख डरे इंसान
कारण क्या सोचे नहीं, बना हुआ अंजान
समय शेष है रोकिये , जल बर्बादी आज
तरस न जायें देखिये , जल को फिर सन्तान
(179 )
पहचानने से जब हमें इंकार कर दिया
इस ज़िन्दगी को आप ने दुश्वार कर दिया
हम जानते मज़बूर होगे आप भी बहुत
जो आप ही खुद दर्द का विस्तार कर दिया
(180 )
छत पर खिले इस चाँद सा जलता रहा हूँ रात भर
मैं देख उसके दाग को ढलता रहा हूँ रात भर
कहता यही कोई बता दे भूल मेरे प्यार की
मैं आज उस की याद में गलता रहा हूँ रात भर
डॉ अर्चना गुप्ता