(22 )
खबर कब थी ज़माने को मुझे गम ने भिगोया था
रहा था जागता मै रात भर बिल्कुल न सोया था
जुदा जब तुम हुये मुझ से छुड़ाकर प्यार का दामन
डुबोया था समन्दर भी सनम इतना मैं रोया था
(23 )
हमें भी वक्त ने कितना सताया है
दिए है दर्द आँसू से रुलाया है
कभी तो भाग्य बदलेगा हमारा भी
इसी उम्मीद पर हर पल बिताया है
(24 )
मुहब्बत हमारी सजा हो गई है
जहाँ की ख़ुशी बेमज़ा हो गई है
गिला क्या करें हम तुम्हारी जफा का
जुदाई हमारी रजा हो गई है
डॉ अर्चना गुप्ता
Bahut sudar! 🙂
Waah! kyaa baat hai!!
bahut hi sundar rachna, dil ko chhu gayi.