मैं गीत लिखूँ इक ऐसा
हो सबके मन का जैसा
ना राजा हो ना रानी
हो सब लोगो की बानी
सबकी ही गाथा जैसा
मैं गीत लिखूँ इक ऐसा
हर कोई नाचे गाये
खुशिओं में झूमा जाये
मुस्काये कलिका जैसा
मैं गीत लिखूँ इक ऐसा
हर ले जो सबके गम को
पी जाये जग के तम को
दीपों की माला जैसा
मैं गीत लिखूँ इक ऐसा
जो साजन घर ले जाये
सखिओं की याद दिलाये
बाबुल के अँगना जैसा
मैं गीत लिखूँ इक ऐसा
डॉ अर्चना गुप्ता
bahut sunder geet !
bahut bahut shukriya alka narula ji
bahut sundar kavita… apki is kavita ki tareef me meri taraf ye panktiyan…
” main kavita padhna chahoon aisa.
jo ho “geet likhun ek aisa” jaisa. ”
wonderful…
thank u soo much for so encouraging cmnt ……..