गीत लिखूं एक ऐसा (गीत1 )

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मैं गीत लिखूँ इक ऐसा
हो सबके मन  का जैसा

ना राजा हो ना रानी
हो सब लोगो की बानी
सबकी ही गाथा जैसा
मैं गीत लिखूँ इक ऐसा

हर कोई नाचे गाये  
खुशिओं  में झूमा जाये
मुस्काये कलिका जैसा
मैं गीत लिखूँ इक ऐसा

हर ले जो सबके गम को
पी जाये जग के तम को
दीपों की माला जैसा
मैं गीत लिखूँ इक ऐसा      

 जो साजन घर ले जाये
सखिओं की याद दिलाये
बाबुल के अँगना जैसा
मैं गीत लिखूँ इक ऐसा

डॉ अर्चना गुप्ता

 

 

 

 

 

 


 

 

 

 

 

 

 

 

Published by

Dr. Archana Gupta

Dr. Archana Gupta loves to give words to her thoughts in the form of poems, stories and articles. She is passionate about learning new things and admire the beauty of the world.

4 thoughts on “गीत लिखूं एक ऐसा (गीत1 )”

  1. bahut sundar kavita… apki is kavita ki tareef me meri taraf ye panktiyan…

    ” main kavita padhna chahoon aisa.
    jo ho “geet likhun ek aisa” jaisa. ”

    wonderful…

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