आज नारी ने चाहे खुद को
कितना ही ऊपर उठाया
पुरुष प्रधान समाज में उस पर
अत्याचार कहाँ रुक पाया
नहीं ये दास्ताँ आज की
सदियों से यही होता आया ।
कौरवों की सभा में
जुआ खेला पुरुषों ने
सजा का हक़ केवल
द्रौपदी ने ही पाया
राम ने लेकर भी अग्निपरीक्षा
सीता का ही
निष्कासन करवाया ।
देवी रूप में भले ही पुरुष
नारी को पूजता आया
पर राधा सी हठीली
लक्ष्मी सी चंचला या
काली सी रौद्ररूपा वाला
रूप उसे कभी न भाया ।
नारी को देकर भी आज़ादी
सिमटे ही रहने पर
मज़बूर करता आया
चुप करके उसे उसके
अस्तित्व से ही खेलता आया
तभी मधुमती ,गीतिका हो
या नैना साहनी सबने
अपना ही जीवन गंवाया ।
आज बदलते दौर में
जरुरत है सोच बदलने की
पुरुष के अंदर बैठे
अहंकार को तोड़ने की
अपने दम पर अपनी
मंज़िल तक पहुँचने की
तभी पा सकेगी अपना मनचाहा
पाकर मान सम्मान उसका
त्याग नहीं जायेगा जाया ।
डॉ अर्चना गुप्ता