तुम्हारा मौन
उसमें छिपे शब्द
मेरी ख़ामोशी
बस उनका अक्स
अनेक कही अनकही बातें….
पहचान लेते हैं हम तुम
मेरी ख़ामोशी को
तुम पढ़ा करते हो
तुम्हारे मौन को
मैं लिखा करती हूँ
तुम्हारा मौन हर बार
मेरी ख़ामोशी के कान में
फुसफुसा कर
कह जाता है सब कुछ
हाँ शायद सब कुछ…
जो तुम मुझे और
मैं तुमसे कहना चाहती हूँ
उकेर कर कागज़ पर
हो जाती हु तृप्त
ख्वाबों के महल में
लगा लेती हूँ गश्त
मौन और ख़ामोशी का
ये मिलन निःशब्द
डॉ अर्चना गुप्ता
Silence speaks…
Beautiful poem.
thanx saru ji
I’m at a loss of words to appreciate this poem…hence please accept my silence!
ohhhh ur words made me so happy…… thank u sooooo much…
thank u so much amit ji .mera utsah badane ke liye.