कल सिखाया था जिसको
उँगली पकड़ कर चलना ,
सिखाई थी दुनियादारी
और मुश्किलों से लड़ना ,
आज वही बेटा
समझाता है माँ को ,
जब मेरे मिलनेवाले आएं
तो अन्दर ही रहना माँ।
बंद कमरे में टी वी का रिमोट
थमा देता है माँ को।
थपक २ कर सुलाया कभी
जागकर रात भर
पंखा झलती रही ,
आज जब उठ जाती है
रात में घबरा कर,
बत्ती जला कुछ कहती है
बुदबुदाकर ,
बेटा समझाता है माँ को ,
बहुत काम है मुझे
नाहक यूँ ही ना उठाया करो ,
नींद की गोली दे
सुला देता है माँ को।
कहानी सुनाना, लोरियाँ गाना ,
तोतली जुबां पर वारी २ जाना ,
कल की बात लगती माँ को।
आज वही माँ
तरसे दो बोल को ,
चाहे दो पल साथ बिताना।
बेटा समझाता है माँ को
बहुत बोलती हो ,
थोड़ा गम ख़ाना भी सीखो।
बहु को बेटी भी बनाना सीखो।
छलछला जाती हैं
माँ की अँखियाँ
कहने लगती है
बेटे को समझाकर
तेरी तो माँ थी ना जब
तू ही नहीं समझा मुझे यहॉँ ,
माँ बनू किसी और की
अब मुझमे ये हिम्मत कहाँ।
बेटा अवाक् सा जड़ हो
देखता रह जाता है माँ को।
डॉ अर्चना गुप्ता
sunder aur bhaavpoorn!
thank u soo much for appreciating it………
true
Very touching, brought tears to my eyes.
Very beautiful, touched my heart.
बहुत बहुत शुक्रिया सरु जी।