(31 )
झूठ भी गर तुम कहो एतबार कर लूँगा
जीत को भी तुम कहो मै हार कर लूँगा
बस किया है प्यार तुम से ही यकीं मानो
हर तुम्हारा फैसला स्वीकार करलूँगा
(32 )
दर्द दिल का तुम छुपाते हो
क्यूँ मुझे इतना सताते हो
कब मुझे माना कभी अपना
दोष मेरे ही गिनाते हो
(33 )
जिन्दगी लाइलाज सी क्यों है
ये जुदाई रिवाज़ सी क्यों है
सर चढ़े जब नशा करो इसका
आशिकी बद मिजाज़ सी क्यों है
डॉ अर्चना गुप्ता
Beautiful verses! 🙂
Loved the one at no.33!!
thanx