(46 )
जब भी तुम्हारे गम हमें आकर सताते हैं
आँसू हमारी आँख में मोती सजाते हैं
कैसे बतायें हाल दिल का तुम न समझोगे
हम दीप यादों के जला उत्सव मनाते हैं
(47 )
आँख में ही हमें आँसुओं को छुपाना है
वक्त बस यूँ तड़प कर हमें ये बिताना है
है सताती बहुत याद आकर तुम्हारी अब
और बाहर डराता हमें ये जमाना है
(48 )
अश्क़ ये छिप नैन में ही छटपटाते हैं
पर तुम्हारे सामने हम मुस्कराते हैं
आह को हमने निकलने कब दिया साथी
बस मिले ना गम तुम्हे हम ये जताते हैं
डॉ अर्चना गुप्ता