(64 )
जब भी खुद को गम में पाती दर्पण को आगे रखती हूँ
जब भी देखूँ मैं दर्पण में खुद से ही बातें करती हूँ
सच है अच्छा मीत न कोई खुद से ज्यादा होता जग में
चाहे कितनी भी पीड़ा हो हँस हँस कर खुद ही हरती हूँ
(65 )
भांप ले उनको दिलों में जो जहर रखते है
ताड़ने वाले क़यामत की नजर रखते हैं
है बड़ा मुश्किल छिपाना बात इनसे दिल की
चुप भले हों पर ज़माने की खबर रखते है
(66)
कल कल करती यूँ ही बहती मैं भावों की सरिता में
कूल मिला ना भटकी रहती मैं भावों की सरिता में
चैन गँवा दुख की लहरों में खो जाती हूँ जब प्रीतम
एक कहानी तुम से कहती मैं भावों की सरिता में
डॉ अर्चना गुप्ता