(112 )
झुर्रियां अब बे हिसाब बन गई
मोहब्बतों की किताब बन गईं
याद माँ की आ रही है देखकर
पाखुरी खिल खिल गुलाब बन गईं
(113 )
गुनगुनी धूप का हो रहा भास है
दूर होगी गलन अब यही आस है
लोग भी आ गये हैं छतों -पार्क में
हर किसी में नया आज उल्लास है
(114 )
याद के दीपक जलाये
प्रीत में सपने सजाये
ज़िन्दगी ने जब दिये गम
अश्क के मोती लुटाये
डॉ अर्चना गुप्ता