(145 )
जीवन की रीत निराली है
बचपन जैसे हरियाली है
मीत जवानी में कुछ कर ले
रात बुढ़ापे की काली है
(146 )
जीवन में शूलों का बोना आया है
अपनों पर जुल्मों का ढोना आया है
आसान नहीं इंसा का इंसा बनना
चैन जमाने का बस खोना आया है
(147 )
रंग धरती का निखर आया इधर
रूप फूलों का सँवर आया इधर
रश्मियों का जाल फैलाता हुआ
भोर का सूरज नजर आया इधर
डॉ अर्चना गुप्ता