(184 )
कमाया नाम भी हमने कमाई खूब दौलत भी
नहीं अब साथ में कोई खड़े तन्हा अकेले ही
कभी जब धन नहीं था सोचते थे धन ख़ुशी देगा
मगर जाना ये’ अब हमने वही खुशियाँ थी’ प्यारी सी
(185 )
जख्म जो दिल पर लगें उनके निशां जाते नहीं
दूर इतनी वो गए कुछ भी खबर पाते नहीं
आज तन्हा ही अकेले हम खड़े है इस जगह
है अँधेरी रात अब साये नज़र आते नहीं
(186 )
जब जब रिश्तों से अपना नाता टूट गया
अनमोल खजाना यादों का बस छूट गया
हम जीते तो हैं अधरों पर मुस्कान लिए
पर चैन हमारे दिल का कोई लूट गया
डॉ अर्चना गुप्ता
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