(187 )
पीर की है नदी अश्क की धार है
डूबते पर नहीं प्रीत पतवार है
रीत बेदर्द है इस जहाँ की बड़ी
है जुदाई वहाँ पर जहाँ प्यार है
(188 )
छुपाना कठिन है बहुत प्यार मेरा
अधूरा रहेगा तुम्हारा बसेरा
अकेले नहीं जी सकोगे जहां में
मुझी से मिलेगा ख़ुशी का सवेरा
(189 )
जाने कब वो इनाम आएगा
दिल को उनका सलाम आएगा
रास्ता ढ़ूँढता है मंजिल को
देखिये कब मुकाम आएगा
डॉ अर्चना गुप्ता