(208 )
अलग जबसे हुए हो तुम लगे वनवास सा जीवन
नयन में आ गए आँसू लगे परिहास सा जीवन
न समझे हो न समझोगे हमारे प्यार की कीमत
हकीकत में तुम्हारे बिन हुआ इतिहास सा जीवन
(209 )
धरा क्यों डोलती है आज मिलकर सोचना होगा
सुनो क्या खोलती है राज मिलकर सोचना होगा
रुलाया है बहुत इसको किये हैं कर्म ही ऐसे
सजे सर पर ख़ुशी का ताज मिलकर सोचना होगा
(210 )
रुलाते हैं यहाँ रिश्ते, हँसाते हैं यहाँ रिश्ते
बड़े ही प्यार से जीवन सजाते हैं यहाँ रिश्ते
बँधी है डोर साँसों की इन्हीं के नाम से देखो
तभी तो साथ जन्मों का निभाते हैं यहाँ रिश्ते
डॉ अर्चना गुप्ता