(211 )
बेहाल ज़िन्दगी को आराम कब मिलेगा
बंज़र हुई धरा पर इक फूल कब खिलेगा
खाई बहुत हैं’ हमने ठोकर कदम कदम पर
अब घाव वक़्त जाने कब देखिये सिलेगा
(२१२)
खुद को खुली किताब बनाया नहीं गया
जो लिख गया नसीब मिटाया नहीं गया
वो हैं हमें अजीज न इजहार कर सके
ये राज आज तक भी बताया नहीं गया
(213 )
जल जीवन है जल को हम बर्बाद क्यों करें
झूठे रिश्तों से दिल को आबाद क्यों करें
स्वार्थ त्याग कर भला करें अब हर जन – जन का
केवल वादों का जग में हम नाद क्यों करें
डॉ अर्चना गुप्ता