(214 )
हमें जब मिले ख्वाब में ही मिले
अधूरे रहे प्यार के सिलसिले
खुली आँख ने अश्क भर कर कहा
झरे फूल चाहत के जितने खिले
(215 )
दर्द हम सहते रहे हैं
दूर ही रहते रहे हैं
हम ह्रदय की बात को अब
मन ही’ मन कहते रहे हैं
(216 )
आज अपने सभी अजनबी हो गये
जो सहारे बने थे कहीं खो गये
श्वेत दामन पे जितने लगे दाग हैं
आँख के अश्रु आकर उन्हें धो गये
डॉ अर्चना गुप्ता