(217 )
लेकर समन्दर प्यास के बैठे रहे हम पास
समझे नही फिर भी हमारे वो कभी अहसास
सहते रहे हम जिन्दगी भर आँसुओं की पीर
फिर से बने दुख मीत अपने सुख चले वनवास
(218 )
जुल्म को सहना नहीं, ये पाप होता है
रात दिन मन में बड़ा संताप होता है
ज्ञान गीता का यही बस याद रखना तुम
जो सहे उसके लिये अभिशाप होता है
(219 )
गुल खिलते हैं पर उनको खिलकर मुरझाना पड़ता है
काँटों में रहते हैं पर उनको मुस्काना पड़ता है
सुख दुख का आना जाना तो जीवन चक्र हुआ करता
दुनिया में है सत्य यही मन को समझाना पड़ता है
डॉ अर्चना गुप्ता