बादलों के बीच जब
चाँद निकल आता
मैं खो जाती कहीं
सारा जहाँ सो जाता
तारों के झुंड में
निहारती उसे
यादों के झुरमुटों में
टटोलती उसे
अपने घर का वो अंगना
बड़ा याद आता
मैं खो जाती कहीं
सारा जहाँ सो जाता
वो बचपन की यादें
लगाती गले
वो अल्हड़ सा यौवन
पुकारे मुझे
गया वक़्त कभी फिर
वापस ना आता
मैं खो जाती कहीं
सारा जहाँ सो जाता
आज का भी वक़्त
बन जायेगा अतीत
इसे भी याद करके
उठेगी दिल में टीस
गुपचुप सा एक अश्क
गालों पे फिसल जाता
मैं खो जाती कहीं
सारा जहाँ सो जाता
-डॉ अर्चना गुप्ता
Very beautiful poem…
thanx so much abhishek ji.
sundar
thanx sarvesh ji
thanx