बाज़ारवाद वोट का

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वोट पर भी
बाज़ारवाद की
परत मत चढाओ।
स्याही दिखाकर छूट देकर
अपनी सेल मत बढाओ।
हमारा हक़ हमारी ताकत
है हमारा वोट।
इसे भी भुना सकते हो
येगलत  सन्देश मत फैलाओ।

डॉ अर्चना गुप्ता

 

चुनाव एक मनोरंजन

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रोज हो रहे है सियासी हमले

गरम सियासत के बहाने

लगे हैं नेता

एक दूसरे को पटकने,

चुनाव का

कोई फायदा हो या न हो

पर मनोरंजन तो कर दिया

हम सबका रोज इसने।

 

– डॉ अर्चना गुप्ता 

ज़िंदगी का फलसफ़ा

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ज़िन्दगी है तोहफा कहा जाता मगर
मेरा फलसफा अलग आता नज़र
निराशा भरी ये जीवन की डगर
सावन भी सूखा आता नज़र

ठोकरें देते राह के पत्थर
पहाड़ के जैसे आते नज़र
गुमनामी भरा मेरा ऐसा सफर
रोशनी में भी तम आता नज़र

बेरंग सा चहुंओर मंज़र
बसंत भी पतझड़ आता नज़र
जब तन्हाई में उठता यादों का बवंडर
ख़ामोशी में तूफां आता नज़र

खाकर पीठपीछे से खंज़र
फ़र्क़ गैर अपनों का नहीं आता नज़र
अलग सा है कुछ ये मेरा सफर

क्यों है ये न जानूँ मगर

डॉ अर्चना गुप्ता

वोट की चोट

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लोकतंत्र के इस महाकुंभ में
सही उम्मीदवार चुनने में
मतदान का करो प्रयोग
हमारी तो यही सोच

नियमों को ताक  पर रखने वाले
राजाज्ञा के नाम पर
मनमानी करने वाले
अफसरों पर लगाओ रोक
हमारी तो यही सोच

नन्हे बच्चों वाली माताओं पर
बुजुर्गों और बीमारों पर
मत चलाओ सरकारी जोर
हमारी तो यही सोच

पार्टी के नाम पर ना देकर
सही उम्मीदवार को चुनकर
लगाओ भ्रष्टाचार पर कुछ रोक
हमारी तो यही सोच

ना हो कोई भी पसंद
तो भी ना हो घर में बंद
NOTA पर लगाओ वोट
हमारी तो यही सोच

मारो  वोट की चोट
जन जन में यही जोश

डॉ अर्चना गुप्ता

एक छोटी सी भूल

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हो गयी हमसे छोटी सी भूल
तुमसेरूठने का कर गयी कसूर
वो था तेरे प्यार का सुरूर
तुम समझे उसे मेरा गुरुर
गुरुर तो था मुझे मेरे प्यार पर
सोचा लाख रूठू मना लोगे आकर
पर तुम तो हो गए खफा
समझ कर हमें बेवफा
हो गयी हमसे अब ये खता
देना चाहे कुछ भी सजा
पर बेरुखी तेरी नही कुबूल
मुझे छोड़ जाना नही मंजूर
अश्रु ये मेरे नही फ़िज़ूल
तुमसे समझने में हुई भूल
अश्क़ये मेरे पश्चाताप के
दर्दे दिल है जो आँखों से बहे
चाहे तुम मुझ पर करो न यकीं
दिल है मेरा पूरा मुतमईन
आओगे लौट कर एक दिन जरुर
प्यार पर अपनेमुझे अब भी गुरुर

-डॉ अर्चना गुप्ता

 

आखिरी सफ़र

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वही जमी वही गलियारे
वही दृश्य वही नज़ारे
बस किरदार बदल जाते है
जाने वाले बस
यादें बन कर रह जातें हैं

जीवन भर सबके साथ रहे
सुख दुःख जिनके साथ सहे
अंतिम सफ़र में तो
अकेले ही रह जातें हैं

अपने सब पीछे ही
खड़े रह जाते हैं

ये जीवन है एक ऐसी बज़्म
जब चले गए सब बात ख़त्म
छलावा है यहाँ सब तब
कहाँ ये समझ पातें  हैं
जीवन में यूँ ही बस
भटकते रह जाते हैं

वक़्त बढ़ता है जैसे आगे
धूमिल पड़ जाती हैं यादें
बस तस्वीरोंमें ही
टंगे रह जाते हैं
सूखे फूलों की माला में
सिमट कर रह जाते हैं।

जाने वाले बस
यादें बन कर रह जातें हैं

डॉ अर्चना गुप्ता

अभिनन्दन बहु का


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पल्लवित हो अपनी जननी के आँचल में

रोंपी गई हो अब अपने पिया के आँगन में
लेकर हज़ार सपने इन नयनों में
अभिनंदन तुम्हारा बहु इस घर में

खो गयी मै भी पल भर को उन्ही पलों में
जब रखा था पहला कदम इसी आँगन में
आज रख तुम पर अपना मै आशीष का हाथ
बाँटना चाहती हूँ कुछ अनुभव तुम्हारे साथ

कठिन है पले पौधे का  कही और रोपा जाना
करुँगी कोशिश पूरीमैं अच्छा माली बनना

नए घर नए रिश्तों से हुआ है तुम्हारा सामना
समर्पण से होगा तुम्हे भी इन सबको थामना

वादा है मेरा चाहे कैसी भी हो घडी
पाओगी मुझे अपने ही साथ खड़ी
न थोपूंगी तुम पर कोई बंधन न रस्मों रिवाज
पर अब तुम्ही हो इस कुल की लाज़

जब भी पाना खुद को किसी कश्मकश में
देख लेना रख खुद को उसी अक्स में
तभी पा सकोगी उसका सही हल
हो पाओगी इस जीवन में सफल

मेरे जीने की वजह है तुम्हारा हमसफ़र
संग तुम्हारे ही है उसकी खुशियां मगर
जुडी हैं उसकी साँसे भी मेरी साँसों से
मत रखना दूर उसको उसके इन अहसासों से

जुड़ जाना खुद भी उसके परिवार से
भर जायेगा मेरा दामन भी खुशियों से
बन सच्ची हमसफ़र उसका साथ निभाना
अपने जीवन के हर सपने को सच बनाना।

डॉ अर्चना गुप्ता

 

यादें अतीत की

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बादलों के बीच जब
चाँद निकल आता
मैं खो जाती कहीं
सारा जहाँ सो जाता

तारों के झुंड में
निहारती उसे
यादों के झुरमुटों में
टटोलती उसे
अपने घर का वो अंगना
बड़ा याद आता
मैं खो जाती कहीं
सारा जहाँ सो जाता

वो बचपन की यादें
लगाती गले
वो अल्हड़ सा यौवन
पुकारे मुझे
गया वक़्त कभी फिर
वापस ना आता
मैं खो जाती कहीं
सारा जहाँ सो जाता

आज का भी वक़्त
बन जायेगा अतीत
इसे भी याद  करके
उठेगी दिल में टीस
गुपचुप सा एक अश्क
गालों  पे फिसल जाता
मैं खो जाती कहीं
सारा जहाँ सो जाता

-डॉ अर्चना गुप्ता

बेगुनाह

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बेगुनाह होकर भी
कटघरे में खड़ा होना
बहुत तकलीफ देता है।
चली हूँ केवल
दो कदम एहसास
मीलों का होता है।
सन्नाटे में भी
बस कोलाहल का
भास होता है।
ये कोलाहल

मचा हलचल
सोने भी नही देता है।
मेरे अंदर का सूनापन
मुझे काट खाने
को दौड़ता है।
दिल के जख्मों पर अब
दवा का असर भी
नहीं होता है।
एहसास तुझसे
छले जाने का हरदम
त्रास देता है।

पर घुटी घुटी सी
साँसों को अब भी
तेरा इंतज़ार रहता है।

-डॉ अर्चना गुप्ता