कुण्डलिनी छंद (१ ).

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अपनों से तू प्रीत कर ,अपनों को मत खोय

दुख में तेरे सँग चले ,अपना ही प्रिय कोय

अपना ही प्रिय कोय ,अरे ओ भोले भाले

रिश्ते हैं अनमोल ,प्रेम से इन्हें निभाले

२ 

बिन बोले सब बोल दें, दिल की पीड़ा नैन

टूटे दिल को कब मिला, अन्त समय तक चैन

अन्त समय तक चैन ,समझिये इनकी बानी

झर झर झरते नैन, प्रेम की कहें कहानी

3

देख नजर से गैर की ,अपने को मत तोल

मंजिल तेरी  तय करें ,असल ख़ुशी के बोल

असल ख़ुशी के बोल ,ख़ुशी  दुनिया की पाये

हिम्मत से ले काम ,सफल जीवन हो जाये

डॉ अर्चना गुप्ता

 

 

 

भोर एक सुकून

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भोर चुपके से आती
कानों में फुसफुसाती
मेरी नींद खुलती
मैं  फिर सो जाती
अलार्म की घंटी फिर
कानों को थपथपाती
अंगड़ाई भी आकर
मेरे तन को सहलाती

विवश हो मैं उठ जाती
खोल दरवाजा बाहर आती
ताज़ी हवा बन झोंका
मेरे गले लग जाती
कोयल की कुहू कुहू
चिड़ियों की चहचहाहट
मन को गुदगुदा जाती
चुपके से झांकते
स्वर्णिम सूरज से
मैं अँखिया लड़ाती

सुबह की सैर का
भरपूर आनंद उठाती
लौट चाय की ललक
रसोई में ले जाती
कड़क चाय और
अख़बार संग
दोस्ती निभाती
सुकून के इन पलों को
मुट्ठी में संजोना चाहती
पर भागते वक़्त संग
भागती चली जाती

उलझ सी जाती बस
जीवन की भूल भुलैया में
भागती  दौड़ती सी
एक अनोखी दुनिया में
यूँ ही शाम और
फिर रात हो जाती
होठों पे मुस्कान लिए
मैं  सो जाती
उसी भोर के इंतज़ार में
उसी सुकून की तलाश में

डॉ अर्चना गुप्ता

 

गीत लिखूं एक ऐसा (गीत1 )

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मैं गीत लिखूँ इक ऐसा
हो सबके मन  का जैसा

ना राजा हो ना रानी
हो सब लोगो की बानी
सबकी ही गाथा जैसा
मैं गीत लिखूँ इक ऐसा

हर कोई नाचे गाये  
खुशिओं  में झूमा जाये
मुस्काये कलिका जैसा
मैं गीत लिखूँ इक ऐसा

हर ले जो सबके गम को
पी जाये जग के तम को
दीपों की माला जैसा
मैं गीत लिखूँ इक ऐसा      

 जो साजन घर ले जाये
सखिओं की याद दिलाये
बाबुल के अँगना जैसा
मैं गीत लिखूँ इक ऐसा

डॉ अर्चना गुप्ता

 

 

 

 

 

 


 

 

 

 

 

 

 

 

नहीं शिकवा जिंदगी से कोई

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देख भीगी पलकें ना सोच लेना

गम है हमें कोई

खुशियां भी भिगो जाती हैं

इन अँखियों को यूँ ही

 

देख यूँ अकेले ना सोच लेना

सताती है तन्हाई

ख्वाबों में बसे रहते हो

हरदम तुम यूँ ही

 

उठे हाथ देख ना सोच लेना

तमन्ना और कोई

दुआ में उठ जाते हैं

शुक्रिया करने यूँ ही

 

तुम तुम ना रहे ना सोच लेना

शिकवा हमें कोई

हम भी ना हम रह पाये

वक़्त के साथ यूं ही

 

ना डर मौत से तो  न सोच लेना

डर ज़िंदगी का कोई

जो मिलना था वो मिल गया

बाकी गवां दिया यूँ ही

 

डॉ अर्चना गुप्ता

 

निःशब्द मिलन

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तुम्हारा मौन

उसमें छिपे शब्द

मेरी ख़ामोशी

बस उनका अक्स

 

अनेक कही अनकही बातें….

पहचान लेते हैं हम तुम

मेरी ख़ामोशी को

तुम पढ़ा करते हो

तुम्हारे मौन को

मैं लिखा करती हूँ

 

तुम्हारा मौन हर बार

मेरी ख़ामोशी के कान में

फुसफुसा कर

कह जाता है सब कुछ

हाँ शायद सब कुछ…

जो तुम मुझे और

मैं तुमसे कहना चाहती हूँ

 

उकेर कर कागज़ पर

हो जाती हु तृप्त

ख्वाबों के महल में

लगा लेती हूँ गश्त

 

मौन और ख़ामोशी का

ये मिलन निःशब्द

 

डॉ अर्चना गुप्ता