मुक्तक (13 )

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(37 )

जख्म दिल का अब दिखाया नहीं जाता

मर्ज़ अपना अब बताया नहीं जाता

प्यार के बदले मिली कब वफा हमको

चाह कर भी दर्द गाया नहीं जाता

(38 )

मत मुसीबत का करो तुम सामना

खुश रहो  तुम बस  यही  है  कामना

मैं तुम्हें आगाह करना चाहती

दिल दुखाऊँ मैं नहीं ये भावना

(39 )
कर दिया व्याकुल विकल है आज हमको

कर दिया है इस कदर नाराज़ हमको

छोड़ कर दुनिया तुम्हारी जा रहे अब

ना मिलेंगे लाख दो आवाज हमको

डॉ अर्चना गुप्ता —-

मुक्तक (12 )

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(34 )

बिना श्रद्धा नहीं जीवन दृष्टि

बिना श्रद्धा नहीं सुख की वृष्टि

रखो श्रद्धा गुरू हो या ईश

तभी सुन्दर बनेगी ये सृष्टि

(35 )

हो रही सब तरफ पाप की गर्जना

हम मिटा दें इसे हो सफल अर्चना

हाथ पर हाथ रख बैठना अब नहीं

है हमारी यही आप से प्रार्थना

(36 )

नेता जब जब भरते पर्चा

बस मुद्दों पर करते चर्चा

वादे कर जाते बड़े बड़े

कहने में लगता क्या खर्चा

डॉ अर्चना गुप्ता

मुक्तक ( 11 )

 

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(31 )

झूठ भी गर तुम कहो एतबार कर लूँगा

जीत को भी तुम कहो मै हार कर लूँगा

बस किया है प्यार तुम से ही यकीं मानो

हर तुम्हारा फैसला स्वीकार करलूँगा

(32 )

दर्द दिल का तुम छुपाते हो

क्यूँ मुझे इतना सताते हो

कब मुझे माना कभी अपना

दोष मेरे ही गिनाते हो

(33 )

जिन्दगी लाइलाज  सी क्यों है

ये  जुदाई रिवाज़ सी क्यों है

सर चढ़े जब नशा करो इसका

आशिकी बद मिजाज़ सी क्यों है

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (10 )

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(28)

इस जीवन में चारों ओर

मैं ही मैं का देखा शोर

इस मैं को तुम देना छोड़

नाजुक है जीवन की डोर

(29) 

नहीं पाते समझ वो भावना मेरी

बताऊँ अब किसे क्या कामना मेरी

करूँ तो प्यार का इजहार कैसे मैं

अधूरी रह न जाये साधना मेरी

(30 )

कभी हमारा अपनापन देखा करो

कभी हमारे अपने बन देखा करो

हमें  नहीं चाहा तुमने यूँ तो मगर

कभी हमारा टूटा मन देखा करो

डॉ अर्चना गुप्ता

 

 

मुक्तक (9 )

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(25 )

काम कर कर के गये थक हमारे कर

याद आये फिर हमें आज प्यारे कर

ना थकन महसूस हो अब हमें कुछ भी

साथ में हों यदि हमारे -तुम्हारे कर

(26)

मिलती हमें माँ बाप से पहचान है

मिलता गुरू के ज्ञान से सम्मान है

लेकर धरोहर प्यार की आगे बढ़े

बनना हमें अब नेक दिल इन्सान है

(27)

मुश्किल बहुत है जिन्दगी की ये डगर

पाते बहुत हैं तो गँवाते भी मगर

जब मौत आयेगी मरोगे शान से

सम्मान का जीवन जिया तुमने अगर

डॉ अर्चना गुप्ता

मुक्तक (8 )

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(22 )

खबर कब थी ज़माने को मुझे गम ने भिगोया था

रहा था जागता मै रात भर बिल्कुल न सोया था

जुदा जब तुम हुये मुझ से छुड़ाकर प्यार का दामन

डुबोया था समन्दर भी सनम इतना मैं रोया था

(23 )

हमें भी वक्त ने कितना सताया है

दिए है दर्द आँसू से रुलाया है

कभी तो भाग्य बदलेगा हमारा भी

इसी उम्मीद पर हर पल बिताया है

(24 )

मुहब्बत हमारी सजा हो गई है

जहाँ की ख़ुशी बेमज़ा हो गई है

गिला क्या करें हम तुम्हारी जफा का

जुदाई हमारी रजा हो गई है

डॉ अर्चना गुप्ता

मुक्तक (७)

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(१९ )
त्रेता युग में राम बने तुम दुष्टों का संहार किया

द्वापर में श्रीकृष्ण बने पांचाली का उद्धार किया

लेना होगा तुमको हे प्रभु ! फिर अवतार धरातल पर

मानव के कृत्यों ने भू के कण-कण को अंगार किया

(२०)

टूट रहे संयुक्त परिवार

होकर भौतिकता के शिकार

कुछ कारण संवाद हीनता

कुछ मानसिकता है बीमार

 

(२१ )

ऊँची इमारत महानगर की शान है

है भीड़ से भरा खो जाती पहचान है

बस शान शौकत, चैन यहाँ मिलता नहीं

रौनक सुबह शाम दोपहर सुनसान है

डॉ अर्चना गुप्ता

मुक्तक (6 )

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(16)

बसने इन नैनों में आ गया कोई

बनके दिल की धड़कन छा गया कोई

मैं क्या जानूँ ये सब कुछ हुआ कैसे

चुपके से इस मन को भा गया कोई

(17)

चाहा है बस हमने तुम को

भँवरा तो ना समझो हम को

हम तो हैं बस प्रेम पुजारीँ

सहते रहते हैं हर गम को
(18)

यादें तुम्हारी ,जिन्दगी मेरे लिए

हैं जान से भी कीमती मेरे लिए

मैंने रखा उनको हिफाजत से सदा

वो हैं निशानी प्यार की मेरे लिए

डॉ अर्चना गुप्ता

प्रीत की डोर(गीतिका 1 )


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ये अश्क होते मोती 
यदि आँख तेरी रोती

लेता पिरो मै उनको
जो प्रीत डोर होती

मै बांसुरी सा बजता
तू होश अपने खोती 

दिल हार के मैं हँसता
तू जीत कर भी रोती

मैं नींद तेरी बनता
तू ख्वाब बस संजोती

मै चांदनी ले आता
बन रातरानी सोती

डॉ अर्चना गुप्ता


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