(97 )
दर्द में हम मुस्कुराना जानते हैं
बन शमा खुद को जलाना जानते हैं
लाख दुश्मन हो भले सारा ज़माना
प्यार पर हम जां लुटाना जानते है
(98 )
तुम्हे पलकों पर मैं बिठाऊँगा
हथेली पर सरसों उगाऊँगा
मिलो मुझ को इक बार तो देखो
मुहब्बत के मोती लुटाऊँगा
(99)
वक्त पीछे गया रीत बाकी रही
हार की टीस में जीत बाकी रही
मुस्कुरा -मुस्कुरा कर चले वो गये
टूट नाता गया प्रीत बाकी रही
डॉ अर्चना गुप्ता