मुक्तक(47 )

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(139 )
मैं फूल बनूँ जग को महकाती जाऊँ

ममता की मूरत बन ममता दिखलाऊँ

ऑक्टोपस सी बाहें फैला मत रोको

दीपक बन मैं तम को दूर भगाऊँ

(140 )

आपको तस्वीर में अब ढूढ़ती है

आपकी आवाज हरदम गूंजती है

रह न पाते थे बिछड़ कर एक पल भी

फिर गये क्यों छोड़ कर माँ पूछती है

(141 )

करें वो कर्म हम जिससे बढ़े प्रीत

बनायें दुश्मनों को भी सुनो मीत

मिटाकर नफ़रतें हम अब करें प्रेम

चलो गायें सभी मिल प्यार के गीत

डॉ अर्चना गुप्ता

मुक्तक (46 )

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(136 )

काली काली जुल्फों से ,इक लट ऐसी छितराई

चाँद सरीखे मुखड़े पर, आवारा सी लहराई

काले नैन कटीले उस के गालों में है डिम्पल

गौरी ने दर्पण देखा ,तो खुद पर ही शरमाई

(137 )

चले आज पावन सुगन्धित समीर

छुआ मन किसी ने हुये हम अधीर

बढ़ी धड़कनेऔर छाया खुमार

गुलाबी हुए गाल जैसे अबीर

(138 )

साथ तुम्हारा हमको न्यारा लगता है

साथ तुम्हारे हर गम हारा लगता है

नाम नहीं है कोई भी इस रिश्ते का

पर सब रिश्तों से ये प्यारा लगता है

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (45 )

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(133 )
यदि कदम फूंक कर मै चला नहीं होता

पाँव मेरा जले बिन बचा नहीं होता

मुश्किलों से कभी भी डरा नहीं वरना

मैं यहाँ गिर के फिर से उठा नहीं होता

(134 )

कष्टों से हम लड़ लेते हैं

दुख में सुख को गढ़ लेते हैं

जन्मों का ये रिश्ता अपना

आँखों से सब पढ़ लेते हैं

(135 )

ये जिन्दगी भी दर्द की मुस्कान बन गई

ये आँसुओं की धार ही पहचान बन गई

किस्मत हमारी वक्त ने    इस प्यार से लिखी

ये आज अपनी जिन्दगी की  शान बन गई

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (44 )

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(130 )
सब कहते बेटी का करते कन्यादान

बेटी तो होती है मात पिता की जान

दान जिसे करते अपना हीरा अनमोल

सर आँखों पर बैठा कहते उसको मान

(131 )

कितना मिलता खग का देखो मानव से व्यवहार है

नीड बनाकर रहते इनका भी बनता परिवार है

फर्क यही है हम जो करते बदले में भी चाहते

प्रतिदान नही चाहत इनकी भोला इनका प्यार है

(132 )

अपने अपने जीवन के देखो हम सब हैं नायक

समय समय पर बन जाते फिर क्यों हम हैं खलनायक

दुनिया हर पल याद करे कुछ ऐसा हम कर जायें

जन -जन को खुश हाल करें बन जायें हम जननायक
डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (43 )

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(127 )

धरती माँ का हमको कर्ज चुकाना है

अपनी माँ का हमको दर्द मिटाना है

इक इक पौधा जीवन देने वाला हो

हम सबको मिलजुल कर फ़र्ज़ निभानाहै

(128 )

धूप खिली है आज धरा मुस्काई है

ठिठुरन से भी राहत सबने पाई है

रंग बिरंगे फूल खिले हैं उपवन में

फागुन की मस्ती सी देखो छाई है

(129 )

सात रश्मियों से सजे , रथ पर हुये सवार

सूर्य देव मिलने चले, देखो शनि के द्वार

उत्तरायण गति से प्रभु ,चलते चलते आज

सुनो मकर में आ गये, जीवन के आधार

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (४२ )

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(124 )

घाव मन के पुराने हरे हो गये

आज वो सामने जब खड़े हो गये

मुश्किलों से भुलाया उन्हें था मगर

ये नयन देख फिर बावरे हो गये

(125 )

इम्तहानों के जमाने हो गये

बिन हँसे ही ये फसाने हो गये

आह भरना यूँ हमें आता नहीं

दर्द भी हम पर दिवाने हो गये

(126 )

देखकर घाव नैना सजल हो गए

चैन खो सा गया हम विकल हो गए

प्यास कैसे बुझेगी बताओ हमें

स्त्रोत जल के सभी जब गरल हो गए

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (41 )

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(121 )
ऐसा क्यों कर कहते हो

तुम पलकों पर रहते हो

जीवन के हर सुख दुख को

साथ तुम्हीं तो सहते हो

(122 )

मै अकेले सफ़र कर रहा हूँ

ज़िन्दगी यूँ बसर कर रहा हूँ

रोशनी तो मिली ही नहीं है

तीरगी में गुज़र कर रहा हूँ

(123 )

मन सागर की बहती लहरें

सुख दुख दोनों सहती लहरें

गीतों में ढल ढल कर सारे

जग की बातें कहती लहरें

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (40 )

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(118 )

जुल्मी घटा घिरी है कितना हमें डराये

अब आँख से हमारी सावन बरस न जाये

नित रोज ही बहाने करते नये नये तुम

हम प्यार ये तुम्हारा बिल्कुल समझ न पाये

(119 )

बस याद हमको आपकी नादानियाँ रहीं

लब चुप रहे पर बोलती खामोशियाँ रहीं

हमने हजारों दीप यादों के जला लिये

चाहे ज़माने की लगी पाबंदियाँ रहीं

डॉ अर्चना गुप्ता

(120 )

जब भी कभी डिगे पग ,पथ आपने दिखाया

हर हौंसला बढ़ाकर ,आगे हमें बढ़ाया

जब टूटकर बिखर कर ,बरबाद हो रहे थे

तब ज़िन्दगी से हमको ,था आपने मिलाया

डॉ अर्चना गुप्ता