(139 )
मैं फूल बनूँ जग को महकाती जाऊँ
ममता की मूरत बन ममता दिखलाऊँ
ऑक्टोपस सी बाहें फैला मत रोको
दीपक बन मैं तम को दूर भगाऊँ
(140 )
आपको तस्वीर में अब ढूढ़ती है
आपकी आवाज हरदम गूंजती है
रह न पाते थे बिछड़ कर एक पल भी
फिर गये क्यों छोड़ कर माँ पूछती है
(141 )
करें वो कर्म हम जिससे बढ़े प्रीत
बनायें दुश्मनों को भी सुनो मीत
मिटाकर नफ़रतें हम अब करें प्रेम
चलो गायें सभी मिल प्यार के गीत
डॉ अर्चना गुप्ता