ज़िंदगी एक ऐसा सफर है जहां तरह तरह के अनुभव रोज ही होते रहते है। कभी ज़िंदगी बहुत खुशनुमा लगती है तो कभी ग़मों से बोझिल सी लगती है। अक्सर यही होता है कि हम दुःख के समय में नकारात्मकता से भर जाते है। हर चीज़ हमें ख़राब ही लगती है। ऐसे में बहुत सी घटनाएँ ऐसी दिख जाती है जो हमारे अंदर उत्साह भर देती हैं।
मेरा एक शौक बहुत पुराना है कि मै रोज सबह की सैर का आनंद लेती हूँ। आसमान से ,पेड पौधों से ,चिड़ियों से बातें करना मुझे बहुत अच्छा लगता है। सैर करते हुए कुछ दृश्य मै रोज देखती हु जिन्हे देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता है और मुझे अपूर्व शान्ति मिलती है।
एक जोड़ा जो करीबन ७५ साल के आसपास का होगा रोज टहलने के लिए आता है। ये बुजुर्ग दम्पति धीरे धीरे डग भरते हुए चलते है। शायद आंटी के पैरों में दर्द रहता है। अंकल उनका हाथ पकड़कर उनके साथ ही चलते हैं। बीच बीच में डिवाइडर पर दोनों बैठ जाते हैं। अंकल हाथ में ली बोतल से उन्हें पानी पिलाते हैं और फिर दोनों चल पड़ते हैं।
मै भी उनसे आगे बढ जाती हूँ। और जब लौटती हहूँ तो उन्हें एक मंदिर के आगे आपस में बातें करता हुआ पाती हूँ। मै भी मंदिर में हाथ जोड़ती हूँ तो देखती हूँ अंकल बड़े प्यार से आंटी को उठा रहे है हैं और फिर दोनों चल पड़ते हैं साथ साथ। सच में बहुत अच्छा लगता है इतनी उम्र में भी उनका इतना प्यार देखकर। ये सब देखकर मुझमे एक नयी ऊर्जा और सकारात्मकता भर जाती है कि सालों बाद भी प्यार रहता है। घटता नही बल्कि बहुत ज्यादा बढ़ जाता है।
ऐसे ही रास्ते में एक पार्क पड़ता है जिसमे १०-१५ लोग जो शायद रिटायर हो चुके है, बैठे मिलते हैं। वो लोग मिलकर योग करते है तालियां बजाते है और जोर जोर से ठहाके लगाकर हास्य आसान करते हैं। परिचर्चा भी करते है नए नए विषयों पर। राजनीती पर बहस भी करते है। एक दिन तो मेने उन लोगो को कविता पाठ करते हुए देखा। सब बड़े ही मनोयोग से सुन रहे थे।
मुझे बड़ा अच्छा लगा ये सब देखकर। प्रेरणा भी मिली कि इंसान को कभी भी ये सोचकर नही बैठ जाना चाहिए की अब की क्या रखा है ज़िंदगी में। अब तो सारे काम ख़त्म हो गए बस राम नाम जपो। बल्कि अपनी इच्छा और शौक पुरे करने चाहिए। अपने ही हमउम्र लोगों के साथ बैठकर अपना मनोरंजन करना चाहिए। ज़िंदगी के हर पल को ख़ुशी से बिताना चाहिए।
इस तरह से रोज मेरी सैर में शारीरिक स्वास्थ्य के साथ साथ मानसिक स्वास्थ्य भी अच्छा बना रहता है और मुझे सकारात्मक ऊर्जा भी मिल जाती है और मुझे अभूतपूर्व शांति का अनुभव होता है। ये रोज़ का ही घटनाक्रम है।
डॉ अर्चना गुप्ता
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