मन के अंधेरों में
छिपी रहती किवाड़ों के पीछे
कुछ ठिठकी सी भावनायें
खिड़की के शीशे पर सर पटकती
पानी की बूंदें दस्तक सी देती
मन की तलहटी पर
भिगो जाती पलकों के गलियारे
ढूंढ लेते ये सभी
शब्दों का आशियाना
सीख लेते फिर एक
कविता में ढल जाना
जब कभी कविता को
टटोलती हूँ मन की
कई गांठें खुलती पाती हूँ
ऐ कविता तू
मनोभावों का आइना है
अभिव्यक्ति का जरिया है
हर दिल की आवाज
बनने के लिए तेरा
शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया
डॉ अर्चना गुप्ता