(226 )
रोते मुस्काते जीवन की मैं एक कहानी लिखती हूँ
तेरे मन की अपने मन की जानी पहचानी लिखतीहूँ
सरहद पर मरने वाले जो हँसते हँसते बलिदान हुये
उन माताओं के लालों की मैं वीर जवानी लिखती हूँ
(227 )
इन नयनों में दिखती मुझको सागर सी गहराई
झाँकू इनमें तो बजती है मेरे दिल शहनाई
अलग नहीं हम हो सकते अब इक दूजे से साथी
साथ रहे हैं साथ रहेंगे जैसे हो परछाई
(228 )
हर किसी से दर्द मिलना अब बहुत ही आम है
टूटते रिश्ते यहाँ बस नाम केवल नाम है
प्रीत के सब पात देखो सूखकर झरने लगे
अब दिलों को जोड़ने वाला यहाँ बदनाम है
डॉ अर्चना गुप्ता