पत्तों की सर सर से
लगता है ऐसा
कि छेड़ी हवा ने
कोई जलतरंग ।
हवाओं से आती
प्यार की खुशबू
मदहोश उसमे
हर मन सतरंग ।
बसंत की बहार
फूलों कि भरमार
बिखरी चंहुओर
मीठी मीठी सुगंध ।
महकी फ़िज़ायें
अमवा बौराये
सुन कोयल की कुहू
थिरके अंग अंग ।
होली की बेला
हर कोई खेला
रंगों का खेल
रंगों के संग ।
अपनी ही मस्ती
अपनी ही धुन
भूल सब गम
हर ओर हुड़दंग।
जी ले मुसाफिर
हर पल को जीभर
दिन ज़िंदगानी के
मिले हैं चंद ।
डॉ अर्चना गुप्ता
…sunder kavita!
thanks Amit ji…