नहीं जानता ये मन क्यूँ
तुम्हारा यूँ याद आना
हर रंजो गम
तुमसे बाँटना चाहना
थक जाऊ जब चलते चलते
चाहे तुम्हारा ही हाथ थामना
जीवन की हर उलझन
चाहे तुम्ही से सुलझाना
फिर षोडशी बन पकड़ हाथ
चाहे कुछ पल बिताना
चाहूँ लाख इन एहसासों से
बहुत दूर भागना
पर मन पर भारी है दिल
नामुमकिन इसे समझाना
पर पूछता है ये मन बार बार
ऐसा क्यों क्यों क्यों।
-डॉ अर्चना गुप्ता
touching
thanx hema ji
Nice!
thanx amit ji