(52 )
इक हाथ बढाओ तुम इक हाथ बदाये हम
कोई भी मौसम हो बस प्रीत सजाये हम
हो प्यार भरी बरखा लाये हम वो सावन
जीवन की बगिया मे मिल फूल खिलाये हम
(53 )
ना बात बढ़ाओ तुम ना बात बढ़ायें हम
सब छोड़ अहं अपने बस प्यार निभायें हम
अब भूल सभी अपने गुण दोषों को दोनों
इक सुन्दर सा अपना संसार सजायें हम
(54 )
कुछ शब्द सजाओ तुम कुछ शब्द सजायें हम
उन शब्दों को चुनकर इक गीत बनायें हम
फिर बहकर हम उसकी सुर संगम सरिता में
अपने इस जीवन को उस पार लगायें हम
डॉ अर्चना गुप्ता