(127 )
धरती माँ का हमको कर्ज चुकाना है
अपनी माँ का हमको दर्द मिटाना है
इक इक पौधा जीवन देने वाला हो
हम सबको मिलजुल कर फ़र्ज़ निभानाहै
(128 )
धूप खिली है आज धरा मुस्काई है
ठिठुरन से भी राहत सबने पाई है
रंग बिरंगे फूल खिले हैं उपवन में
फागुन की मस्ती सी देखो छाई है
(129 )
सात रश्मियों से सजे , रथ पर हुये सवार
सूर्य देव मिलने चले, देखो शनि के द्वार
उत्तरायण गति से प्रभु ,चलते चलते आज
सुनो मकर में आ गये, जीवन के आधार
डॉ अर्चना गुप्ता