(151 )
आओ सूरज – चंदा को रंगीन बनायें हम
फूल ख़ुशी के इस जग में अब खूब खिलायें हम
इक दूजे सँग मिलकर सब खेलें होली होली
आओ मन से मन के टूटे तार मिलायें हम
(152 )
रंगीन परिन्दों ने आकाश सजाया है
श्रृंगार धरा का भी हर मन को भाया है
फागुन में होली की क्या मस्ती है छाई
आज मिलन का सबने त्यौहार मनाया है
(153 )
फागुन पर अब पड़ गयी सर्द हवा की मार
सूरज पीछे छिप गया रिमझिम पड़ी फुहार
आसमान के हाथ में बर्फीले हैं रंग
आज मिलन के पर्व पर कैसी चली कटार
डॉ अर्चना गुप्ता