(154 )
आप नहीं साथ मगर दर्द लगा खूब गले
वक़्त नहीं आज मिला छोड़ सभी साथ चले
भूल गये आज सभी कौन बने मीत यहाँ
आस अभी शेष बची दूर कहीं दीप जले
(155 )
किसी के प्यार में जिसने कभी ढलकर नहीं देखा
किसी का हमसफर बनकर कभी चलकर नहीं देखा
मिलेगी हार ही उसको मिलेगी जीत फिर कैसे
कि जिसने दीप बन कर खुद कभी जलकर नहीं देखा
(156 )
उम्र भर प्रीत मैं निभाऊँगी
साथ मिलकर कदम बढ़ाऊँगी
जो ख़ुशी आज तक मिली मुझको
ज़िन्दगी भर न भूल पाऊँगी
डॉ अर्चना गुप्ता