(157 )
वक़्त कहने को’ अपना गुजरता रहा है
रेत सा हाथ से ये खिसकता रहा है
देख पाते नहीं पर नजर में हैं’ उसके
हर घड़ी वक्त हमको परखता रहा है
(158 )
स्वप्न सजाकर आँखों में फिर आज सवेरा आया है
सूर्य नमस्कार किया हमने स्वास्थ्य लाभ कमाया है
सूरज लाल हुआ शर्मा कर नभ का भू से मिलन हुआ
इन सबके स्वागत को हमने दिल का हार बनाया है
(159 )
सदा हाथ सिर पर तुम्हारा रहा है
सिवा कौन तुम सा हमारा रहा है
तुम्हें साथ पाया सदा हर घड़ी में
हमेशा तुम्हारा सहारा रहा है
डॉ अर्चना गुप्ता