(205 )
चलो दिल को जलाकर दिल आज फिर से रौशनी कर दें
मिटा कर नफ़रतें, दिल में मुहब्बत की ख़ुशी भर दें
दुखी लाचार हैं जिनका नही संसार में कोई
हटाकर शूल हम उनके, चुभन की पीर को हर दें
(206 )
उड़ा कर नींद लोगों की कभी सोना नहीं जाना
गँवाया तो बहुत हमने दुखी होना नही जाना
दिये हैं जख्म लाखों इस जमाने ने हमें यूँ पर
दिलों में बीज नफरत के कभी बोना नहीं जाना
(207 )
नहीं वो मोल समझेगा जमाने का असर है ये
पसीना किस तरह बहता नहीं उसको खबर है ये
उड़ाता मौज कहता फ़र्ज़ है माँ बाप का ये तो
समय कर्तव्य का आता बचाता तब नज़र है ये
डॉ अर्चना गुप्ता