हर माँ की एक ही चाहत ,
जीवन में बेटा आगे बढ़े बहुत ,
लगा देती तन मन उसके लिए ,
करती दुआएं लाख उसके लिए।
पर एक दिन मेरा मन भर आया ,
जब एक बेटे को माँ से ये कहता पाया।
बोला…माँ कुछ तेरे कुछ अपने सपने
पूरा करने मैं आगे… तो बढ़ जाऊंगा।
पर लौट कर शायद वापस ना आ पाऊँगा।
एक बार घुस इस दौड़ में
वापसी का रास्ता ना ढूंढ पाऊंगा।
पा तो जाऊंगा बहुत कुछ,
पर छूट भी जायेगा बहुत कुछ,
वो वक़्तकैसे वापस पाऊंगा।
वापस आया भी गर बरसों बाद,
कैसे पाऊंगा आज वाली आप।
नहीं माँ .. वक़्त आगे निकल जायेगा ,
पछतावे में बस हाथ मलता रह जाऊंगा।
हो सकता है माँ ये भी ,
बदल जाऊं वक़्त के साथ मैं भी।
पैसे की चकाचौंध
डगमगा दे मेरे पाँव भी।
तब तो तेरी आँखों का
नूरही मिट जायेगा।
बूढ़ी होती इन आँखों में,
बस इंतज़ार ही रह जायेगा।
काँप उठती है माँ
मेरी रूह ये सोचकर,
मेरा तो आगे बढ़ना ही व्यर्थ जायेगा।
नहीं माँ…बढूंगा तो बहुत
आगे इस दुनिया में
पर उड़कर आसमां में भी
रखूँगा पाँव जमीं में ही।
माँ मैं तुमसे दूर नही रह पाऊंगा।
सुनती रही माँ ये सब
खामोश थे उसके लब
आँखें आंसुओं से लबालब।
आँखों में ले नमी ,
मैं ये सोचने लगी।
गर सोच हो जाये सभी की ऐसी ,
कोई बूढ़ी अंखिया रहे न प्यासी।
भर जाएँ दामन में सारी खुशियां
ना आये उनमे कभी उदासी।
चहक उठेगा घर घर का अंगना ,
वृद्धाआश्रम का तो अस्तित्व ही मिट जायेगा।
पल कर बुजुर्गों की छाँव में
हर बच्चा अच्छा संस्कार पायेगा।
वीभत्स होते से जा रहे समाज में ,
ऐसे ही अच्छा सुधार आएगा।
डॉ अर्चना गुप्ता