मुक्तक (52 )

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(154 )

आप नहीं साथ मगर दर्द लगा खूब गले

वक़्त नहीं आज मिला छोड़ सभी साथ चले

भूल गये आज सभी कौन बने मीत यहाँ

आस अभी शेष बची दूर कहीं दीप जले

(155 )

किसी के प्यार में जिसने कभी ढलकर नहीं देखा

किसी का हमसफर बनकर कभी चलकर नहीं देखा

मिलेगी हार ही उसको मिलेगी जीत फिर कैसे

कि जिसने दीप बन कर खुद कभी जलकर नहीं देखा

(156 )

उम्र भर प्रीत मैं निभाऊँगी

साथ मिलकर कदम बढ़ाऊँगी

जो ख़ुशी आज तक मिली मुझको

ज़िन्दगी भर न भूल पाऊँगी

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (51)

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(151 )

आओ सूरज – चंदा को रंगीन बनायें हम

फूल ख़ुशी के इस जग में अब खूब खिलायें हम

इक दूजे सँग मिलकर सब खेलें होली होली

आओ मन से मन के टूटे तार मिलायें हम

(152 )

रंगीन परिन्दों ने आकाश सजाया है

श्रृंगार धरा का भी हर मन को भाया है

फागुन में होली की क्या मस्ती है छाई

आज मिलन का सबने त्यौहार मनाया है

(153 )

फागुन पर अब पड़ गयी सर्द हवा की मार

सूरज पीछे छिप गया रिमझिम पड़ी फुहार

आसमान के हाथ में बर्फीले हैं रंग

आज मिलन के पर्व पर कैसी चली कटार

डॉ अर्चना गुप्ता

 

 

 

मुक्तक (50 )

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(148 )

दूर जाने का तुम्हें हमसे बहाना मिल गया

आँसुओं को आँख में फिर से ठिकाना मिल गया

तुम समझ पाये नहीं दिल ने बताया भी कहाँ

हम अकेले ही रहे तुमको जमाना मिल गया

(149 )

उलझनों में ही उलझते जा रहे हैं

हम घिरा खुद को ग़मों में पा रहे हैं

छिन गये हैं चैन के पल जिंदगी में

दूर जब से आप होते जा रहे है

(150 )

खुद आदमी को छल रहा है आदमी

दिन रात गम में गल रहा है आदमी

इंसानियत को भूल कर इस दौर में

अब चाल कैसी चल रहा है आदमी

.डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (49 )

images (8)(145 )

जीवन की रीत निराली है

बचपन जैसे हरियाली है

मीत जवानी में कुछ कर ले

रात बुढ़ापे की काली है

(146 )

जीवन में शूलों का बोना आया है

अपनों पर जुल्मों का ढोना आया है

आसान नहीं इंसा का इंसा बनना

चैन जमाने का बस खोना आया है

(147 )

रंग धरती का निखर आया इधर

रूप फूलों का सँवर आया इधर

रश्मियों का जाल फैलाता हुआ

भोर का सूरज नजर आया इधर

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (48 )

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(142 )

तैरते- तैरते मैं किधर आ गया

याद की जब नदी में भँवर आ गया

रात भर नींद से जागती आँख में

दर्द जो भी छिपा सब नजर आ गया

(143 )

दर्द मिलने अभी हमें आया

साथ में प्यास भी मगर लाया

आप से दूर अब रहें कैसे

दिल अभी तक समझ नहीं पाया

(144 )
गीत  हो तुम ताल   बन हम तो किया करते धमाल

भाव  हो तुम शिल्प बन हम तो  किया करते कमाल

ईश की ही  है  कृपा  जो बन गये अंजान मीत

दो नहीं हम एक हैं जोड़ी हमारी बेमिसाल

डॉ अर्चना गुप्ता

मुक्तक(47 )

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(139 )
मैं फूल बनूँ जग को महकाती जाऊँ

ममता की मूरत बन ममता दिखलाऊँ

ऑक्टोपस सी बाहें फैला मत रोको

दीपक बन मैं तम को दूर भगाऊँ

(140 )

आपको तस्वीर में अब ढूढ़ती है

आपकी आवाज हरदम गूंजती है

रह न पाते थे बिछड़ कर एक पल भी

फिर गये क्यों छोड़ कर माँ पूछती है

(141 )

करें वो कर्म हम जिससे बढ़े प्रीत

बनायें दुश्मनों को भी सुनो मीत

मिटाकर नफ़रतें हम अब करें प्रेम

चलो गायें सभी मिल प्यार के गीत

डॉ अर्चना गुप्ता

मुक्तक (46 )

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(136 )

काली काली जुल्फों से ,इक लट ऐसी छितराई

चाँद सरीखे मुखड़े पर, आवारा सी लहराई

काले नैन कटीले उस के गालों में है डिम्पल

गौरी ने दर्पण देखा ,तो खुद पर ही शरमाई

(137 )

चले आज पावन सुगन्धित समीर

छुआ मन किसी ने हुये हम अधीर

बढ़ी धड़कनेऔर छाया खुमार

गुलाबी हुए गाल जैसे अबीर

(138 )

साथ तुम्हारा हमको न्यारा लगता है

साथ तुम्हारे हर गम हारा लगता है

नाम नहीं है कोई भी इस रिश्ते का

पर सब रिश्तों से ये प्यारा लगता है

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (45 )

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(133 )
यदि कदम फूंक कर मै चला नहीं होता

पाँव मेरा जले बिन बचा नहीं होता

मुश्किलों से कभी भी डरा नहीं वरना

मैं यहाँ गिर के फिर से उठा नहीं होता

(134 )

कष्टों से हम लड़ लेते हैं

दुख में सुख को गढ़ लेते हैं

जन्मों का ये रिश्ता अपना

आँखों से सब पढ़ लेते हैं

(135 )

ये जिन्दगी भी दर्द की मुस्कान बन गई

ये आँसुओं की धार ही पहचान बन गई

किस्मत हमारी वक्त ने    इस प्यार से लिखी

ये आज अपनी जिन्दगी की  शान बन गई

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (44 )

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(130 )
सब कहते बेटी का करते कन्यादान

बेटी तो होती है मात पिता की जान

दान जिसे करते अपना हीरा अनमोल

सर आँखों पर बैठा कहते उसको मान

(131 )

कितना मिलता खग का देखो मानव से व्यवहार है

नीड बनाकर रहते इनका भी बनता परिवार है

फर्क यही है हम जो करते बदले में भी चाहते

प्रतिदान नही चाहत इनकी भोला इनका प्यार है

(132 )

अपने अपने जीवन के देखो हम सब हैं नायक

समय समय पर बन जाते फिर क्यों हम हैं खलनायक

दुनिया हर पल याद करे कुछ ऐसा हम कर जायें

जन -जन को खुश हाल करें बन जायें हम जननायक
डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (43 )

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(127 )

धरती माँ का हमको कर्ज चुकाना है

अपनी माँ का हमको दर्द मिटाना है

इक इक पौधा जीवन देने वाला हो

हम सबको मिलजुल कर फ़र्ज़ निभानाहै

(128 )

धूप खिली है आज धरा मुस्काई है

ठिठुरन से भी राहत सबने पाई है

रंग बिरंगे फूल खिले हैं उपवन में

फागुन की मस्ती सी देखो छाई है

(129 )

सात रश्मियों से सजे , रथ पर हुये सवार

सूर्य देव मिलने चले, देखो शनि के द्वार

उत्तरायण गति से प्रभु ,चलते चलते आज

सुनो मकर में आ गये, जीवन के आधार

डॉ अर्चना गुप्ता