मुक्तक (75 )

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(223 )

धरा काँपी मिटा घरवार है देखो

बहा आँसू रहा संसार है देखो

न जाने लोग कितने हैं मरे इसमें

पड़ी कुदरत की कैसी मार है देखो

(224 )

आँख में आँसू नजर आने लगा है अब

हर समय ये दर्द भी भाने लगा है अब

हम अकेले में नहीं तन्हा कभी होते

याद में उनकी नशा छाने लगा है अब

(225 )

गीत प्यारा गुनगुनाने आज आना है

साथ में लेकर सुहाने साज आना है

धड़कनों में इस तरह मेरी समाये तुम

जिन्दगी में प्यार का अब राज आना है

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (74 )

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(220 )

बड़ा अभिमान था खुद पर झुका कर सर नहीं देखा

कमाई खूब दौलत धर्म अपना पर नहीं देखा

समय की मार तो देखो न काया है न माया है

सभी ने साथ अब छोड़ा तुझे मुड़ कर नहीं देखा

(२२१)

लगेंगी ठोकरें हर पल सँभलना है यहाँ हमको

सफलता गर नहीं मिलती न डरना है यहाँ हमको

परीक्षा खूब लेती हर कदम पर ज़िन्दगी लेकिन

लगा कर हौंसलों के पंख उड़ना है यहाँ हमको

(222 )

हमारे आँसुओं को तुम सदा हथियार कहते हो

हमारी भावनाओं को सदा व्यापार कहते हो

बहे भी हैं अगर आंसू तुम्ही से रूठ कर प्रियतम

नहीं क्यों प्यार का बोलो उसे इजहार कहते हो

डॉ अर्चना गुप्ता

मुक्तक (73 )

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(217 )

लेकर समन्दर प्यास के बैठे रहे हम पास

समझे नही फिर भी हमारे वो कभी अहसास

सहते रहे हम जिन्दगी भर आँसुओं की पीर

फिर से बने दुख मीत अपने सुख चले वनवास

(218 )

जुल्म को सहना नहीं, ये पाप होता है

रात दिन मन में बड़ा संताप होता है

ज्ञान गीता का यही बस याद रखना तुम

जो सहे उसके लिये अभिशाप होता है

(219 )

गुल खिलते हैं पर उनको खिलकर मुरझाना पड़ता है

काँटों में रहते हैं पर उनको मुस्काना पड़ता है

सुख दुख का आना जाना तो जीवन चक्र हुआ करता

दुनिया में है सत्य यही मन को समझाना पड़ता है

डॉ अर्चना गुप्ता

मुक्तक (72 )

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(214 )

हमें जब मिले ख्वाब में ही मिले

अधूरे रहे प्यार के सिलसिले

खुली आँख ने अश्क भर कर कहा

झरे फूल चाहत के जितने खिले

(215 )

दर्द हम सहते रहे हैं

दूर ही रहते रहे हैं

हम ह्रदय की बात को अब

मन ही’ मन कहते रहे हैं

(216 )

आज अपने सभी अजनबी हो गये

जो सहारे बने थे कहीं खो गये

श्वेत दामन पे जितने लगे दाग हैं

आँख के अश्रु आकर उन्हें धो गये

डॉ अर्चना गुप्ता

मुक्तक (71 )

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(211 )

बेहाल ज़िन्दगी को आराम कब मिलेगा

बंज़र हुई धरा पर इक फूल कब खिलेगा

खाई बहुत हैं’ हमने ठोकर कदम कदम पर

अब घाव वक़्त जाने कब देखिये सिलेगा

 

(२१२)
खुद को खुली किताब बनाया नहीं गया

जो लिख गया नसीब मिटाया नहीं गया

वो हैं हमें अजीज न इजहार कर सके

ये राज आज तक भी बताया नहीं गया

 

(213 )

जल जीवन है जल को हम बर्बाद क्यों करें

झूठे रिश्तों से दिल को आबाद क्यों करें

स्वार्थ त्याग कर भला करें अब हर जन – जन का

केवल वादों का जग में हम नाद क्यों करें

डॉ अर्चना गुप्ता

मुक्तक (70 )

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(208 )

अलग जबसे हुए हो तुम लगे वनवास सा जीवन

नयन में आ गए आँसू लगे परिहास सा जीवन

न समझे हो न समझोगे हमारे प्यार की कीमत

हकीकत में तुम्हारे बिन हुआ इतिहास सा जीवन

(209 )

धरा क्यों डोलती है आज मिलकर सोचना होगा

सुनो क्या खोलती है राज मिलकर सोचना होगा

रुलाया है बहुत इसको किये हैं कर्म ही ऐसे

सजे सर पर ख़ुशी का ताज मिलकर सोचना होगा

(210 )

रुलाते हैं यहाँ रिश्ते, हँसाते हैं यहाँ रिश्ते

बड़े ही प्यार से जीवन सजाते हैं यहाँ रिश्ते

बँधी है डोर साँसों की इन्हीं के नाम से देखो

तभी तो साथ जन्मों का निभाते हैं यहाँ रिश्ते

डॉ अर्चना गुप्ता

मुक्तक (69 )

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(205 )

चलो दिल को जलाकर दिल आज फिर से रौशनी कर दें

मिटा कर नफ़रतें, दिल में मुहब्बत की ख़ुशी भर दें

दुखी लाचार हैं जिनका नही संसार में कोई

हटाकर शूल हम उनके, चुभन की पीर को हर दें

 

(206 )

उड़ा कर नींद लोगों की कभी सोना नहीं जाना

गँवाया तो बहुत हमने दुखी होना नही जाना

दिये हैं जख्म लाखों इस जमाने ने हमें यूँ पर

दिलों में बीज नफरत के कभी बोना नहीं जाना

 

(207 )

नहीं वो मोल समझेगा जमाने का असर है ये

पसीना किस तरह बहता नहीं उसको खबर है ये

उड़ाता मौज कहता फ़र्ज़ है माँ बाप का ये तो

समय कर्तव्य का आता बचाता तब नज़र है ये

डॉ अर्चना गुप्ता

मुक्तक (68 )

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(202 )

वो चित्र बहुत अब भाता है

जो माँ की याद दिलाता है

प्यारे प्यारे बचपन के दिन

दिखला आँखें भर लाता है

(203 )

मीत होकर भी नहीं स्वीकार करते

क्यों हमारे प्यार से इन्कार करते

आज तक भी ये समझ पाये नहीं हम

बस दिखावे के लिये मनुहार करते

(204 )

वक्त कर्मों का सिला देता है

आस के गुल को खिला देता है

ये कभी रुकता नहीं चलता बस

वक्त बिछड़ों को मिला देता है

डॉ अर्चना गुप्ता

 

मुक्तक (67 )

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(199 )

घर को केवल घर कब जाना

घर को मैंने मंदिर माना

बच्चों की खुशिओं में जन्नत

माँ बनकर मैंने पहचाना

(200 )

बनाते सैकड़ों झूठे बहाने

गए थे गोपियों को तुम सताने

नहीं अब बोलती कान्हा सुनो मैं

करो जितने जतन पर मन न माने

(201 )

क्यों पुराने सवाल करते हो

बेबजह ही बवाल करते हो

जीत किस की हुई बताओ मत

तोड़कर दिल कमाल करते हो

डॉ अर्चना गुप्ता

“अभिव्यक्ति “

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मन के अंधेरों में
छिपी रहती किवाड़ों के पीछे
कुछ ठिठकी सी भावनायें

खिड़की के शीशे पर सर पटकती
पानी की बूंदें दस्तक सी देती
मन की तलहटी पर
भिगो जाती पलकों के गलियारे

ढूंढ लेते ये सभी
शब्दों का आशियाना
सीख लेते फिर एक
कविता में ढल जाना

जब कभी कविता को
टटोलती हूँ मन की
कई गांठें खुलती पाती हूँ

ऐ कविता तू
मनोभावों का आइना है
अभिव्यक्ति का जरिया है

हर दिल की आवाज
बनने के लिए तेरा
शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया
डॉ अर्चना गुप्ता