(136 )
काली काली जुल्फों से ,इक लट ऐसी छितराई
चाँद सरीखे मुखड़े पर, आवारा सी लहराई
काले नैन कटीले उस के गालों में है डिम्पल
गौरी ने दर्पण देखा ,तो खुद पर ही शरमाई
(137 )
चले आज पावन सुगन्धित समीर
छुआ मन किसी ने हुये हम अधीर
बढ़ी धड़कनेऔर छाया खुमार
गुलाबी हुए गाल जैसे अबीर
(138 )
साथ तुम्हारा हमको न्यारा लगता है
साथ तुम्हारे हर गम हारा लगता है
नाम नहीं है कोई भी इस रिश्ते का
पर सब रिश्तों से ये प्यारा लगता है
डॉ अर्चना गुप्ता