(106 )
मीत होकर भी नहीं स्वीकार करते हो
क्यों हमारे प्यार का व्यापार करते हो
हम समझ पाये नहीं ये आज तक साथी
क्यों भुलाने को हमें लाचार करते हो
(107 )
रूप कैसे है दिखाती ज़िन्दगी भी
खिलखिलाती तो रुलाती ज़िन्दगी भी
साथिया जी लो मिलेगी कब दुबारा
पाठ हरदम ये सिखाती ज़िन्दगी भी
(108 )
आप हो जीवन हमारे
चाँद सूरज और तारे
जिन्दगी कट जाएगी अब
एक दूजे के सहारे
डॉ अर्चना गुप्ता